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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/८६

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11 “यह भी सच है श्रीमन्त । अंग्रेज़ो की इस समय एक लाख सेना मराठा-मण्डल को घेरे पड़ी है। जिस के पास समर्थ तोपखाना है। कहा तो यही जाता है कि यह पिण्डारियों के दमन के लिए है, पर हक़ीक़त में यह सब तैयारी मराठा शक्ति को चकनाचूर करने के लिए है।" "तो अफ़ज़लगढ़ की लड़ाई केवल एक तमाशा था।" "श्रीमन्त, मैंने अपनी आँखों से देखा कि-विश्वासघाती अमीरखाँ ने अफ़ज़लगढ़ के मैदान में जान-बूझ कर हमारे मराठा जवानों को दुश्मनों के भालों और गोलियों के हवाले कर दिया।" "और अब वह अपनी काली करतूत दिखाने को भरतपुर आ रहा है ? पर भरतपुर का राजा रणजीतसिंह कांटे का आदमी है।" श्रीमन्त, भरतपुर के महाराज अपने वचन पर दृढ़ हैं। परन्तु अंग्रेजों के जाल वहाँ भी फैल रहे हैं।" "खैर, अब तुम कहो,” उसने एक दूसरे सरदार की ओर देख कर कहा- "लाहौर दर्बार की क्या खबर लाए हो।" "रणजीतसिंह और उनके सिख सरदार सोलहों आना अंग्रेज़ों के हाथों में खेल रहे हैं । रणजीत सिंह ने साफ जवाब दिया है कि श्रीमन्त की भलाई इसमें है कि वे अंग्रेजों से सुलह कर लें, और मुझसे कुछ भी आशा न रखें।" सरदार का यह जवाब सुनकर होल्कर क्षण भर चुप खड़ा रहा । फिर उसने अपने सेनापति भास्करराव की ओर देख कर कहा- "वे तीनों अंग्रेज़ अफसर कहाँ है, जिन्हें गिरफ्तार किया गया था। न्हें हाजिर करो।" भास्कर राव के संकेत से थोड़ी ही देर में रस्सियों से बंधे तीनों अंग्रेज़ अफसरों को हाजिर किया गया । बन्दी नीचा सिर किए चुप-चाप आ खड़े हुए । होल्कर ने प्राज्ञा दी, 'इनके बन्धन खोल दिए जाय ।' तुरन्त उनके बन्धन खोल दिए गए। होल्कर ने एक के निकट जाकर पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है ?" ८६