इतने में सेनापति बालुकाराय ने आकर महाराज को प्रणाम किया और कहा, "महाराज की क्या आज्ञा है?" महाराज ने किसलिए सेनापति को बुलाया था, यह वे इस समय भूल गए। उन्होंने ब्राह्मणों की ओर हाथ उठाकर कहा- "इन सब राजविद्रोहियों को बाँधकर बन्दी कर लो।" “अन्नदाता, ये भूदेव हैं, वेदपाठी ब्राह्मण।” "तो यहाँ इनका क्या काम?" "अन्नदाता, ये सोमेश्वर की यात्रा को जा रहे थे। राह में लुटेरों ने इन्हें लूट लिया।" “लुटेरों को पकड़ा तुमने?" “अन्नदाता, महमद सेती-कच्छ का दुर्दान्त डाकू है, उसके हज़ारों साथी हैं।" "तो उन सबको सूली पर चढ़ा दो।" “अन्नदाता...' महाराजा की पिनक में हर बार विघ्न पड़ रहा था। उन्होंने क्रोध करके खवास से कहा, “निकालो, निकालो इन सब हरामखोरों को।" "अन्नदाता, ये वेदपाठी ब्राह्मण आपको आशीर्वाद देते हैं।" “अच्छा, हुआ, इन्हें एक-एक सोने की मुहर दे दो, जाओ, तंग न करो।" इतना कह वे और आराम से लेटने को मसनद पर लुढ़क गए और आँखें बंद कर ली। अब और बातें करना अशक्य समझकर सेनापति बालुकाराय ब्राह्मणों को ले बाहर चले गए।
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