और विजय-नाद की हिलोरें उठने लगीं। सैनिकों के रक्त में उत्तेजना भरने वाले मारू बाजे बजने लगे। सेना की कूच से पृथ्वी की धूल आकाश में उड़कर छा गई। कब सूर्योदय हुआ, इसका भी भान न रहा। अमीर ने अपने दूतों के मुँह से जब धर्मगजदेव का सन्देश सुना, तो वह गम्भीर हो गया। उसने तुरन्त युद्ध करने का निश्चय कर, सेनापतियों सहित अथक श्रम कर रातोंरात सेना को व्यूहबद्ध किया। अमीर यद्यपि मरुस्थली को पार करके अभी आया था। उसकी सेना थकी हुई और कुछ अव्यवस्थित भी थी। परन्तु तुरन्त युद्ध के सिवा दूसरा चारा न था। रात्रि के पिछले पहर अमीर एक चंचल अश्व पर सवार अपने सरदारों सहित, एक ऊँचे टीले पर चढ़कर हिन्दुओं की सेना की गतिविधि देखने लगा। उसने देखा, मशालों की रोशनी में राजपूत सेना व्यूहबद्ध रणसज्जा से सज रणांगण में अग्रसर हो रही है। धोंसे की धमक से अमीर का दिल दहल गया। उसने तीर की भाँति अश्व फेंका और तत्काल अपनी सेना को व्यवस्थित रूप से युद्धस्थली की ओर कूच करने का आदेश दिया। जिहाद के जनून से उन्मत्त बर्बर पठानों और तुर्कों के दल-बादल 'अल्लाहो-अकबर' का नाद करते आगे बढ़ चले।
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