66 हो रहा है? सुनता हूँ, पाटन के सब नगर-जन घरबार छोड़कर भाग रहे हैं।" “महाराज ने सत्य ही सुना है।" “परन्तु क्यों?" “गज़नी का म्लेच्छ गुजरात पर रहा है महाराज।" "तो बालुकाराय क्या कर रहा है, उसने उसे मारकर भगाया नहीं?" "नहीं महाराज।" "क्यों नहीं?" "म्लेच्छों की सेना अपार है। पाटन में सेना नहीं है, सेना के पास शस्त्र नहीं है।" “क्यों नहीं हैं विमल?" “राजकोष का सब धन महाराज ने धवल-गृह और सरोवर के निर्माण में खर्च कर दिया है।" "अरे, किन्तु प्रजा की रक्षा कैसे होगी?" "नहीं होगी महाराज।” “यह कैसी बात?" "यह बात प्रजा जानती है। परम-परमेश्वर गुर्जराधिपति महाराज चामुण्डराय अपनी प्रजा की रक्षा करने में असमर्थ हैं, इसी से वह भाग रही है।" “बहुत खराब बात है...अब क्या होगा?" "पहले पाटन का और फिर सोमनाथ का विध्वंस होगा।" “नहीं, नहीं रे विमल, ऐसा नहीं होना चाहिए, तू नहीं जानता कि अनहिल्लपट्टन पश्चिमी भारत का मुख है और भगवान् सोमनाथ सोलंकियों के कुल-देवता हैं।" "जानता हूँ महाराज।” "तो फिर?" "तो फिर महाराज, उठाइए तलवार घोघाबापा रण में जैसे जूझ गए, महाराज धर्मगजदेव जैसे कट मरे, उसी प्रकार रण में एक-दो हाथ मार-मूरकर आप भी वीरगति प्राप्त कीजिए। पीछे पाटन का जो हो सो हो।" राजा भय और आतंक से पीला पड़ गया। उसे जीवन का बहुत मोह था। उसने मन्त्री की ओर भीत मुद्रा से देखा। मन्त्री अविचल भाव से खड़ा था। राजा ने भर्राए स्वर में कहा, “विमल, पाटन की लाज रख।" “किस प्रकार महाराज।" “जैसे तू ठीक समझे। मेरी ओर से तुझे छूट है, समझा!" "बहुत अच्छा महाराज, तो आप तैयार हो जाइए।" “किसलिए?" “शुक्ल तीर्थ पधारने के लिए। वहाँ महाराज विराज कर शान्ति से परलोक चिन्तन करें।" “और पाटन?" "अब राज्य की खटपट में पड़ने का महाराज का काम नहीं। उसकी समुचित व्यवस्था हो जाएगी।”
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