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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१८६

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धर्मसूत्र सभा-मण्डप में रह गए गंग सर्वज्ञ, जो इस समय शान्त, निर्वाक्, निश्चल, समाधिस्थ, निमीलित-नेत्र बैठे थे और रह गए बाणबली भीमदेव, जो वीरासन से उनके सम्मुख बैठे थे। चौला गंग सर्वज्ञ के चरणतल में बैठी रह गई, गंगा गर्भद्वार के बीचोंबीच प्रस्तर मूर्ति-सी खड़ी थी। रत्न-मण्डप में ये चारों ही प्राणी उस समय निर्वाक्-निस्पन्द, मूक- मौन कुछ क्षण बैठे रहे। कुछ देर में सर्वज्ञ ने निमीलित नेत्र खोले। व्याघ्र-चर्म से वे उठ खड़े हुए। उन्होंने भीमदेव से मन्द स्वर में कहा, “आ पुत्र", और वे उन्हें गर्भ-गृह में ले गए। भीमदेव ने चुपचाप उनका अनुसरण किया, उनके पीछे चौला ने। गंगा ने उन्हें मार्ग दिया, पीछे वह भी गर्भगृह में चली गई। सर्वज्ञ ने पीछे लौटकर कहा, “गंगा, तू गगनराशि को यहीं ले आ और फिर गर्भगृह का द्वार बन्द कर दे।" गंगा ने ऐसा ही किया। ठीक ज्योतिर्लिङ्ग के नीचे एक व्यासासन पर सर्वज्ञ बैठे। उन्होंने सम्मुख भीमदेव को बैठने का आदेश दिया। चौला निस्पन्द खड़ी रही। सर्वज्ञ फिर समाधिस्थ हो गए। इसी प्रकार दो घड़ी समय बीत गया। सर्वज्ञ ने प्रकृतिस्थ हो नेत्र खोले। उनके होंठों पर हास्य की एक रेखा आई, उन्होंने मृदु स्वर में कहा, “केवल इस गर्भगृह और देवता पर तेरा अधिकार नहीं रहेगा महासेनापति। यहाँ केवल मैं देवनिमित्त रहूँगा। इस क्षण जो गर्भगृह के द्वार बन्द हुए, सो ऐसे ही रहेंगे।" भीमदेव ने बद्धाञ्जलि कहा, “गुरुदेव, देव-रक्षण तो करना होगा।" "नहीं, तुम केवल देवस्थान की रक्षा करो पुत्र!" "देव-रक्षा भी होनी चाहिए।" “देवता तो नित्य-रक्षित हैं पुत्र।" “फिर भी सुरक्षा के विचार से देवता का स्थानान्तरित होना आवश्यक है।" “सर्वदेशस्थ सर्वव्यापी देवता का कैसे स्थानान्तर करोगे पुत्र?" "मेरा अभिप्राय ज्योतिर्लिङ्ग से है प्रभु।" “पार्थिव लिंग शरीर से जब ज्योति अन्तर्धान हुई, तब देवाधिष्ठान वहाँ कहाँ रहा? देवप्रस्थान तो हो चुका।” "कब?" “आज-अभी।" "तो अब यह लिंग, देवता नहीं?" "नहीं, देवता का पार्थिव शरीर है-जैसे मृत पुरुष का निष्प्राण शरीर रह जाता "देवता कहाँ गए?" "अन्तर्धान हो गए।"