पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१८८

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“यदि दैव-विपाक से म्लेच्छ हमें पराभूत करें?" "तो यह भी दैवेच्छा!" "तब हम?" "जैसे अब तैसे तब, प्राणान्त अपना कर्तव्य-पालन करेंगे।" "जैसी प्रभु की आज्ञा!" गंग नेत्र बन्द कर समाधिस्थ हो गए। इसी समय गगन को संग ले गंगा गर्भगृह में आई। सर्वज्ञ ने नेत्र खोले, उन्होंने देखा, गगन ने सम्मुख आ साष्टांग दण्डवत् किया। "गगन", सर्वज्ञ ने अकम्पित वाणी से कहा। गगन बद्धांजलि सर्वज्ञ के सम्मुख बैठा। सर्वज्ञ ने कहा, “मैं आज इसी क्षण तेरा पट्टाभिषेक करता हूँ।" और उन्होंने देवस्नात गंगोदक की धार उसके मस्तक पर डालकर उसका अभिषेक किया। बड़ी देर तक वे मंत्रोच्चारण करते रहे। फिर उन्होंने लकुलेशदेव की पादुका और लिंग उसे सौंप कर कहा, “गगन, अब तू अभी, इसी क्षण भरुकच्छ को प्रस्थान कर। अब से तू ही पाशुपत आम्नाय का अधिष्ठाता है, देवता और सेनापति के सम्मुख मैंने तेरा यह पट्टाभिषेक किया।” फिर कुछ ठहरकर उन्होंने भीमदेव की ओर देखा और कहा, “तुम पाशुपत आम्नाय के अधिष्ठाता के संरक्षक और साक्षी हो-वत्स!" "हाँ महाराज," भीमदेव ने बद्धांजलि कहा। “और चौला, तू भी!" चौला ने यह सुनकर हाथ जोड़े। गंगा ने कहा, “मैं नहीं प्रभु?" “नहीं।” गंग ने फिर नेत्र बन्द कर लिए। गगन को विदा करने का संकेत कर गंग ने भी नेत्र पोंछे और कहा, “जा पुत्र, शुभास्ते पन्थानः स्युः।” गगन भूप्रणिपात कर आँसू बहाते बहुत देर तक सर्वज्ञ के चरणों में पड़े रहे। इसके बाद फिर गंग सर्वज्ञ बहुत देर तक नेत्र बन्द किए निश्चल-निर्वाक् बैठे रहे। फिर उन्होंने मन्द स्वर में भीमदेव से कहा, “अब पुत्र, कह, तूने क्या योजना स्थिर की है?" “प्रभु, राजधानी का सम्पूर्ण अस्त्र और अन्न-भण्डार प्रभास में आ गया है। महाराज वल्लभदेव खम्भात पहुँच गए हैं। वे यथासाध्य अन्न और शस्त्र एवं सैनिक वहाँ से भेजने की व्यवस्था कर रहे हैं। आठ भारवाहक और तीन यात्री जहाज़ों की व्यवस्था हमारे पास है। अब हमें प्रभास से अनावश्यक स्त्री-पुरुषों को सुरक्षित खम्भात में पहुँचा देना है। सो उसकी व्यवस्था में महता संलग्न हैं। वे पहले वाणिक्-व्यापारियों को उनके धन और माल मता सहित कल प्रातःकाल रवाना कर देंगे। वापसी में वही यान उधर से आवश्यक सामग्री ले आएँगे।पीछे स्त्री,बालक,वृद्ध और अनावश्यक व्यक्ति भी भेज दिए जाएंगे। सम्भवतः परसों तक इस निष्कासन और सैनिक और सन्निवेश की प्रस्थापना हो जाएगी।" “साधु!” “किन्तु मन्दिर का धन-रत्न भी सुरक्षित होना चाहिए।" “वह सम्पूर्ण रूपेण सम्भव नहीं है, परन्तु आंशिक रूप से जो-जो ले जाने योग्य है, उसे यथास्थान ले जाओ।” यह कहते-कहते गंग सर्वज्ञ गहरी चिन्ता में मग्न हो गए। भीमदेव भी कुछ सोचने लगे।