पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१८९

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"किन्तु महालय की स्त्रियाँ?” एक छिपी दृष्टि चौला पर डालते हुए भीमदेव ने कहा। चौला अभी तक निश्चल भाव से सारा वार्तालाप सुन रही थी। अब साँस रोककर भीमदेव के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगी। सर्वज्ञ ने कहा, “उन्हें भी खम्भात जाना होगा पुत्र।” फिर उन्होंने गंगा की ओर देखकर कहा, “गंगा, यह व्यवस्था तू कर।" “किन्तु गंगा का स्थान तो यहीं है प्रभु।” गंगा अभी तक एक खम्भे के सहारे खड़ी सारा वार्तालाप सुन रही थी। अब उसने स्थिर कण्ठ से ये शब्द कहे, और आगे बढ़कर गंग सर्वज्ञ के दोनों चरण गोद में लेकर उनपर अपने होंठ स्थापित कर दिए। बड़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा। धीरे-धीरे प्रकतिस्थ होकर सर्वज्ञ ने गंगा के सिर पर हाथ रखकर कहा, “गंगा, यह तू क्या कर रही है, सावधान हो!" “मैं सावधान हूँ, आपका स्थान देवता के चरणों में है तो मेरा स्थान आपके चरणों में। आप देवता के सेवक हैं और मैं आपकी किंकरी हूँ। अब मैं इस काल कौन-सी लाज करूँ, बहुत हुआ, जन्मभर जलती रही, अब मेरी सद्गति का समय सन्निकट है, सो मैं अब उस सुयोग को छोडूंगी नहीं।" गंग निरुत्तर हुए। उनके होंठों पर हास्य और आँखों में जल फैल गया। उन्होंने कहा, “गंगा, मैं तेरी किसी भी इच्छा में बाधक नहीं होऊँगा। जैसा तू चाहे, वही कर।" बड़ी देर तक सर्वज्ञ निस्पन्द बैठे रहे। उनकी कूटस्थ दृष्टि देर तक अतीत के चित्रों को देखती रही। और गंगा अपनी आँखों से अविरल अश्रु बहाती रही। युवराज भीमदेव की आँखें भी सजल हुईं। हल्की सिसकी सुनकर भीमदेव और सर्वज्ञ दोनों ही ने आँखें उठाकर देखा, एक खम्भे से चिपकी चौला सिसक-सिसक कर रो रही थी। एक प्रश्न भीमदेव के होंठों पर आया, परन्तु वाणी जड़ हो गई। उनके नेत्र भी इधर-उधर डोलायमान होकर पृथ्वी पर झुक गए। गंग ने स्नेहार्द्र स्वर में आसन से उठकर कहा, “भीमदेव पुत्र, यहाँ आ और पुत्री चौला, तू भी। दोनों आओ।” वे दोनों को ज्योतिर्लिङ्ग के सान्निध्य में ले गए। कम्पित चरणों से चल कर चौला भीमदेव के पाश्र्व में खड़ी हो गई। उसका सर्वांग काँप रहा था। बड़ी देर तक सर्वज्ञ ध्यानस्थ हो देवता के सम्मुख खड़े रहे। फिर स्थिर कण्ठ से कहा, “आगे बढ़ो युवराज, और तुम भी चौला।" दोनो ज्योतिर्लिङ्ग के निकट अन्तरायण में जा खड़े हुए। वहाँ एकाएक चौला का हाथ भीमदेव के हाथ में देकर उस पर मंत्रपूत जल और बिल्व-फल रख सर्वज्ञ ने कहा, “पुत्र भीमदेव, आज तुम देवाविष्ट सत्व हो-तुम्हारी सेवा के लिए यह देवदासी चौला मैं तुम्हें अर्पण करता हूँ। यह तुम्हारे ही समान उच्च वंशोद्भव राजकुल की कन्या है। इसकी रक्षा और सम्मान करना। और पुत्री चौला, यह साक्षात् शिवरूप सत्व भीमदेव तेरी श्रद्धा, पूजा और सेवा का पात्र है, इसी के माध्यम से तू अब से अपनी श्रद्धा, पूजा और देवार्पण करना। अब तुम अभिन्न हो-धर्म-सूत्र में बद्ध हो।" चौला पीपल के पत्ते की भाँति काँपने लगी। भीमदेव अवाक् रह गए। एक