उसे निश्चय जाना होगा।" भीमदेव ने देखा, चौला स्थिर चरणों से उठी, उनके चरण छुए और गंगा की छाती से जा लगी। फिर बिना पीछे देखे सेनापति के पास जाकर कहा, “चलिए।" आगे-आगे सेनापति बालुकाराय, उसके पीछे चौला और उसके पीछे दामोदर महता कक्ष से बाहर हो गए। भीमदेव का एक-एक रक्त-बिन्दु चीत्कार कर उठा। “नहीं, नहीं, ठहरो, मत जाओ! ओ प्राण सखी, प्राणाधिक, कुसुम-कोमल, चौला, चौला," वे उन्मत्त की भाँति हाथ पसार कर द्वार की ओर दौड़े। परन्तु गंगा ने उन्हें रोककर कहा, “मेरे महाराज, आपकी एक मर्यादा है, फिर महाप्रभु सर्वदर्शी हैं, उसकी सुरक्षा सर्वोपरि है, विचार कीजिए।" भीमदेव आहत पशु की भाँति शय्या पर गिरकर छटपटाने लगे। छद्मवेशी सुलतान का वह असियुद्ध, चौला पर उसकी आसक्ति, उनकी दृष्टि में घूम गया। सर्वज्ञ ने जो उसका समर्पण उन्हें किया है, उसे स्मरण कर उन्हें रोमांच हो आया, उनके मुँह से अस्फुट स्वर निकला, “वह मेरी है, वह मेरी है, परन्तु यह ठीक है, उसे सुरक्षित होना ही चाहिए।" गंगा ने निकट आकर कहा, “हाँ महाराज, वहाँ उसकी सुरक्षा और सुख-सुविधा के लिए सर्वज्ञ ने विशेष आदेश दे दिए हैं। आप निश्चिन्त होकर आराम कीजिए।" उसने अपनी कोमल बाँह का सहारा दे महाराज भीमदेव को शय्या पर लिटा दिया और दुकूल उनके अंग पर डालकर चुपचाप कक्ष से चली गई।
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