पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१९७

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“सोमनाथ को जलाकर छार करने के बाद।" “ऐसी बात मत कहो।" “खैर, कहो, कर सकोगी?" “करूंगी।" "तुम कब जा रही हो?" “आज ही रात को यान जा रहा है, उसी में।" "चौला उसी में जा रही है न?" “सुना है।" “और भी कुछ सुना है।?" "सुना नहीं, देखा है।" “क्या देखा?" "चौला रो रही थी।" "क्यों?" “वह खम्भात जाना नहीं चाहती।" “किस लिए?” “वह बाणबली को प्यार करती है" "सच?" “जैसे मैं तुम्हें।" "झूठ!" "नहीं।" "तो फिर?" "वह गंगा से कह रही थी।" "तब?" “गंगा ने कहा-जाना होगा। सर्वज्ञ की आज्ञा है।' “चौला ने सर्वज्ञ से नहीं कहा?" "न, सर्वज्ञ समाधिस्थ हैं।" "ढोंग!" "चौला न जाए तो?" "तुम भी मत जाना।" 'कैसे?" "चौला की सेवा में रहने की आज्ञा लेकर।" “आज्ञा कौन देगा?" "तुम्हारे पिता आसानी से यह व्यवस्था कर देंगे, उनसे कहना।”, “ऐसा ही करूंगी।" "बस तो एक प्यार।" “यहाँ नहीं, खम्भात में।" "तो यही सही।" 66