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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/१९८

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युवक तीर की भाँति द्वार से बाहर जाकर मकानों की छाया में लोप हो गया। शोभना सकते की हालत में खड़ी देखती रही। आँखें उसकी जलधार से गीली और धुंधली हो रही थीं।