से अपनी दाढ़ी नोचने लगा। उसने तुरन्त ही सब रत्नकोष उठाकर मंजूषाओं में भर-भरकर शिविर को रवाना कर दिया। अस्सी मन वज़नी ठोस सोने की जंजीर, जिसमें महाघण्ट लटकता था, तोड़ डाली। किवाड़ों, चौखटों और छत से चाँदी के पत्तर छुड़ा लिए। कंगूरों के स्वर्णपत्र उखाड़ लिए। मणिमय स्तम्भों पर जड़े हुए रत्न उखाड़ने में उसके हज़ारों बर्बर जुट गए। सोने-चाँदी के सब पात्र ढेर कर उसने ऊँटों पर लाद लिए। फिर भी उसे सन्तोष न हुआ। उसके गोइन्दों ने गुप्तकोष की तलाश में समूचे गर्भ- गृह को खोद डाला। ज्योतिर्लिंग के मूल स्थान में बहुमूल्य मणि-माणिक्य का एक महा- भण्डार उसे और मिल गया। इससे उत्साहित होकर उसने समूचे महालय के गोख, फर्श, अलिन्दों को खोद खोदकर गुप्तकोष ढूंढ़ना प्रारम्भ किया। कृष्णस्वामी से उसने बहुत प्रश्न किया। अन्त में उसे बाँधने की आज्ञा दी। सैनिक कृष्णस्वामी को बाँधने लगे। कृष्णस्वामी गिड़गिड़ाने लगे और प्राणों की भिक्षा माँगने लगे। चारों ओर तुमुल कोलाहल मच रहा था। उस कोलाहल के बीच जैसे हृदय को विदीर्ण करती हुई एक तीव्र हुंकृति ने सभी को चौंका दिया। उस पागल क्षण में चीखती-चिल्लाती, न जाने कहाँ से रमादेवी, एक मोटी लकड़ी हाथ में लिए भीड़ को चीरती हुई धंस आई। उसके वस्त्र फटे, नेत्र फैले हुए, बाल बिखरे हुए और मुँह विकराल था। उसने सैनिकों को पीछे धकेलकर कृष्णस्वामी को अपने आँचल में छिपाते हुए ललकार कहा, “कहाँ है वह मुण्डी-काटा गज़नी का अमीर, आए मेरे सामने! देखू कैसे वह मेरे आदमी को बन्दी करता है!” सैनिकों ने झपटकर रमाबाई को पकड़ लिया। धकापेल में उसके वस्त्र तार-तार हो गए। वह गिर गई। परन्तु सिंहिनी के समान गरजकर उसने उछाल भर कर कई सैनिकों को गिरा दिया। सैनिकों ने तलवारें खींच लीं। सैकड़ों तलवारें रमाबाई पर छा गईं। फतह मुहम्मद अब तक चुपचाप अमीर की बगल में बड़ा था। अब वह तलवार सूंत एकदम रमाबाई के आगे छाती तानकर खड़ा हो गया। उसने ललकार कर कहा, “खबरदार, जो कोई इस औरत को छुएगा, उसके धड़ पर सिर नहीं रहेगा।" नामदार अमीर महमूद की उपस्थिति में यह घटना असाधारण थी। महमूद अविचलित भाव से यह सब देख रहा था। अब उसने आगे बढ़कर कहा, “उस औरत को छोड़ दो।" सिपाहियों ने रमाबाई को छोड़ दिया। छूटते ही उसने कृष्णस्वामी के बन्धन खोल दिए और फिर वह अपने हाथ की लकड़ी मज़बूती से पकड़कर अमीर की ओर फिरी। उसने अपनी गोल-गोल आँखें घुमाते हुए कहा, “तू ही वह अमीर है?" "हाँ औरत, मैं ही अमीर महमूद हूँ।" “तूने सर्वज्ञ को मारा, देवलिंग भंग किया?" "हाँ, मैं विजयी मूर्तिभंजक महमूद हूँ। लेकिन औरत, तू क्या चाहती है?" “मै तुझसे यह पूछती हूँ, कि क्या तुझसे किसी ने यह नहीं कहा कि तू मृत्यु का दूत, जीवन का शत्रु और मनुष्यों में कलंक रूप है?" “अय औरत, मैं तेरी सब बात सुनूँगा, कहती जा।" “तूने विजय प्राप्त की, पर किसी की भलाई नहीं की।" “मैं खुदा का बन्दा, खुदा के हुक्म से कुफ्र तोड़ता हूँ।" co
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