पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२६७

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"तू भगवान के पुत्रों को मारता है, जिन्होंने तेरा कुछ नहीं बिगाड़ा। उन्हें लूटता है और उनके घर-बार जलाता है। तू कंकड़-पत्थरों का लालची है, और आदमी का दुश्मन है। तेरा खुदा यदि तेरी इन काली करतूतों से खुश है, तो वह खुदा नहीं, शैतान है।" महमूद की भवों में बल पड़ गए। किन्तु वह चुपचाप अपने होंठों को दबाता हुआ इस दबंग औरत को देखता रहा, जिसके साहस और शक्ति का अन्त न था। वह इस औरत की बात का मर्म समझ गया। उसने फतह मुहम्मद की ओर देखा-वह उसी भाँति तलवार नंगी किए रमादेवी के आगे छाती तानकर खड़ा था। महमूद ने कहा-“अय बहादुर, क्या इस औरत को तू जानता है?" "जानता हूँ जहाँपनाह।” “कौन है यह?" “मेरी माँ।" महमूद बड़ी देर तक उस औरत की ओर ताकता रहा, एक हल्की मुस्कान और करुणा की झलक उसके नेत्रों में आई। उसने जलद गम्भीर स्वर में कहा, “औरत, तलवार के विजेता महमूद के सामने तूने जो सच कहा, वह बादशाहों के लिए इज़्ज़त की चीज़ है। दुनिया में दो चीज़े लोगों को ज़िन्दगी बख्शती हैं-एक सूरज की किरने और दूसरा माँ का दूध। तूने ज़िन्दगी से प्यार करने की ओर मेरा ध्यान दिलाया है। ठीक कहा तूने औरत। और तू माँ है, माँ के बिना महमूद पैदा ही न हो सकता था। फिरदौसी, अलबरूनी, अरस्तू, शेख सादी, ये सब माँ के बच्चे हैं। अय माँ, आगे बढ़, और इस बच्चे के सिर पर हाथ रखकर इसे दुआ बख्श, जिसने तीस वर्ष तक धरती को अपने पैरों से कुचलकर उसे लोहू से लाल किया है।" दो कदम आगे बढ़कर महमूद सिर झुकाकर एक बालक की भाँति रमाबाई के आगे आ खड़ा हुआ। रमाबाई का रुद्र-भाव एकबारगी ही जाता रहा। उसने हाथ की लकड़ी फेंककर आगे बढ़कर महमूद के मस्तक पर हाथ रखा और आँखों में आँसू भरकर कहा, “कैसे तू जिंदा आदमी को मार सकता है, उनका घर-बार लूट सकता है! अरे महमूद, उनकी भी तेरी-सी जान है, उन्हें कितना दु:ख होता होगा, बोल तो? रमाबाई की आँखों से झर-झर आँसू बह चले। महमूद ने सिर ऊँचा किया। उसने कहा, “बहुत लोग मुझसे अपने राज्य और दौलत के लिए लड़े। लेकिन इन्सान के लिए आज तक मुझसे कोई नहीं लड़ा। मैं खुदा का बन्दा महमूद, वही कहूँगा जो मुझे कहना चाहिए। यह औरत, जो मेरे सामने खड़ी है, उसने मुझे एक नई बात बताई है, जिसे मैं नहीं जानता था। इसके हाथ में तलवार नहीं है, तलवार का डर भी इसे नहीं है। यह रोती और गिड़गिड़ाती भी नहीं। बादशाहों के बादशाह महमूद को फटकारती है, इन्साफ के प्यार ने इसे इस कदर मज़बूत बनाया है। इसके आँसुओं का मोल तमाम दुनिया के हीरे-मोतियों से भी नहीं चुकाया जा सकता। इसने महमूद को माँ की तरह नसीहत दी है और अब मैं महमूद, खुदा का बन्दा, वही कहूँगा जो मुझे कहना चाहिए। दो सौ घुड़सवार जिनकी सरदारी फतह मुहम्मद करेगा, इज़्ज़त के साथ बादशाहों के बादशाह की माँ को इसके घर तक पहुँचा दें और उसका हर एक हुक्म बजा लाएँ। महमूद