इस औरत का बेटा है। वह कहता है, वह जितनी दौलत चाहे, ले जाए और जो चाहे उसे वही हुक्म दे।” लेकिन रमा देवी ने कहा, “महमूद, मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं केवल यही चाहती हूँ कि तू अभी, इस देवपट्टन से चला जा और अब अधिक विनाश न कर! और जान रख, कि तू जैसे खुदा का बन्दा है वैसे ही और सब लोग भी हैं। वे सब तेरे भाई हैं महमूद, उन्हें प्यार कर, तेरी नामवर तलवार उनकी रक्षा के लिए है, उनकी गर्दन काटने के लिए नहीं।" महमूद ने तलवार ऊँची करके कहा, “महमूद, खुदा का बन्दा, इस औरत का हुक्म मानकर इसी क्षण इस देवपट्टन को छोड़कर कूच का हुक्म देता है।' महमूद ने तलवार को म्यान में किया और अपना घोड़ा मँगाया। उसके सब सैनिक चुपचाप अपनी तलवारें नीची किए उसके पीछे-पीछे चले। केवल फतह मुहम्मद अपने दो सौ सवारों के साथ रह गया। “अब तू, देवा, तू भी जा,” रमादेवी ने उसे देखकर कहा। "माँ, क्या तुम मुझसे नाराज़ हो?" “जो कुछ तूने किया, वह होनहार था। पर अब तू जा और इन अपने संगी- साथियों को भी ले जा। तेरी आँखों के आगे सर्वज्ञ का हनन हुआ। यह महापाप तेरे ही ऊपर है। पर मैं तुझे दोष नहीं दूंगी। सर्वनाश का क्षण ही आ लगा था।" कुछ देर फतह मुहम्मद सिर नीचा किए खड़ा रहा। वह शोभना के सम्बन्ध में कुछ कहना चाहता था, पर कुछ सोचकर चुप रहा गया। फिर उसने कहा, “माँ, और कुछ कहना है?" "ना, तू जा अब!" फतह मुहम्मद चुपचाप चला गया। उसने आँख उठाकर एक बार भी कृष्णस्वामी की ओर नहीं देखा। उसके पीछे उसके दो सौ सवार भी गए। कृष्णस्वामी नीचा सिर किए खड़े थे। अब कृष्णस्वामी और रमाबाई को छोड़कर और कोई वहाँ उपस्थित न था। रमाबाई ने भरे हुए बादलों के स्वर में कहा, “अब इस तरह खड़े रहने से क्या होगा, चलकर पहले सर्वज्ञ का ऊध्व दैहिक करो, पीछे और कुछ।" और वे दोनों प्राणी उस नष्ट प्रभात में अपनी ही पग-ध्वनि से चौंकते हुए खण्डहरों, मलबों और भग्न मूर्तियों के सूने ढेरों से उलझते, भय आतंक और भूख-प्यास से जर्जर, उस भग्नगृह में घुस रहे थे, जहाँ अब केवल सर्वज्ञ का छिन्न-भिन्न शरीर भूमि पर पड़ा था। ज्योतिर्लिंग के भग्न खण्ड, धन-रत्न भण्डार साथ ही अमीर ले गए थे।
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