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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२७५

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“खम्भात देखा है?" "देखा है हज़रत।" "वहाँ की गली-कूचों से वाकिफ है?" "अच्छी तरह। मैं वहाँ रह चुका हूँ।" “और वह नाज़नीं?" “मेरी एक आँख उस पर है हुजूर।" “क्या तुझे उसकी कुछ खबर है?" "वहाँ जाते ही मिल जाएगी।" “किस तरह?" “मेरा आदमी उसके साथ है।" "वह क्या भरोसे का है?" “मेरी बीवी है।" "तो चल, अभी कूच कर। अपने तीन हज़ार सवार चुन ले और उन्हें तीन टुकड़ियों में बाँटकर मुझसे तीन कोस आगे चल। हरएक टुकड़ी का आधे कोस का फासला रख।” “जो हुक्म!" "और तुझे मैं सिर्फ उस नाज़नीं के ऊपर छोड़ता हूँ, लड़ाई से दूर रहकर, सिर्फ उसी पर आँख रख!" “जो हुक्म हुजूर!" 'और तेरी बीवी, यदि सिपहसालार की बीवी बनने का फख्र हासिल करना चाहती है, तो उसी नाज़नीं की साया में रहे, यह बात उसे कह देना।" “कह दिया है हुजूर।" "तू एक दानिशमन्द खुशगवार बहादुर है। मैं तुझसे खुश हूँ।" फतह मुहम्मद ने अमीर का दामन चूमा और सिर झुका कर तेज़ी से चल दिया। और कुछ ही क्षणों के बाद अमीर का लश्कर खम्भात की राह-बाट जा रहा था, जैसे कोई रक्त-पिपासु हिंस्र पशु अपने मारे हुए शिकार की रक्त-गन्ध लेता हुआ उसके पीछे जाता है। 66