ही निश्चय किया है। इसका सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि वह तुम्हारी ओर से बिल्कुल निश्चिन्त है। और यही समझता है कि तुम ही इस पर कृपादृष्टि रखकर उसका दिया राज भोग रही हो।" “परन्तु सखी, यह खतरनाक खेल कब तक चलेगा?" “जब सब लोग प्राणों की होली खेल रहे हैं, तो यह भी उसी का एक भाग है। अत: इस नाटक को अन्त तक चलने दो और देखो, अन्त में क्या परिणाम होता है।" और भी बहुत-सी बातें हुईं। और फिर अपना-अपना कर्तव्य स्थिर करके दोनों सखियाँ विदा हुईं। इधर चौलारानी के दरबार गढ़ जाने के बाद ही छद्मवेशी दामो महता चण्ड शर्मा के पास आए। चण्ड शर्मा ने चौला की सखी के पाटन में आने के सब समाचार उनसे कहे। सुनकर शोभना से मिलने और चौलादेवी के मन की बात जानने की उत्सुकता से महता अधीर हो गए। वे वहीं रुक कर शोभना के लौटने की प्रतीक्षा करने लगे। परन्तु देखते ही क्षण भर में महता ने चौलारानी को पहचान लिया। महता आनन्द से नाच उठे। उन्होंने आगे बढ़कर नम्रतापूर्वक उन्हें प्रणाम किया। चण्ड शर्मा को यह सुनकर, कि चौलारानी यही हैं, बड़ा आश्चर्य हुआ। शोभना ने अमीर को अच्छे नाटक में फंसाया है, यह सुनकर यह पाटन का चाणक्य बहुत हँसा। उसने शोभना की भूरि-भूरि प्रशंसा की। फिर दोनों कूटनीतिज्ञों ने मिलकर यही निर्णय किया कि जो कुछ हो रहा है, वही ठीक है। अभी चौलादेवी चण्ड शर्मा के घर में गुप्त वास करें और शोभना देवी अपना अभिनय करती रहें। उसी क्षण महता ने आबू को गुप्त सन्देश भेज दिया कि चौलादेवी के सम्बन्ध में चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।
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