पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३४८

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पाटन से प्रस्थान वसन्त की मनोरम ऋतु गुजरात पर छाई। रम्य गुर्जर भूमि विविध लता-पुष्पों से भर गई। पुष्पों की भीनी महक से वातावरण सुरभित हो गया आम के वृक्ष मौर से लद गए। उनपर कोयल कूकने लगी। गुजरात की भूमि एक मनोहर वाटिका की शोभा धारण कर उठी। सघन-वनस्थली में गिरिशृंग से निकलती हुई स्वच्छ जल की पहाड़ी नदियाँ और निर्झर टेढ़ी-सीधी भूमि पर सर्पाकार बहते अति शोभायमान प्रतीत होने लगे। विविध रंगों के पक्षियों के चहचहाने से ध्वनित-सी गुर्जर भूमि स्वर्ग की सुषमा दिखाने लगी। गत विपत्ति को भूल लोग विविध रंग के वस्त्राभूषण धारण कर फाग का आनन्द लेने लगे। अनहिल्लपट्टन के दरबारगढ़ में सुलतान महमूद नित्य सायं-प्रातः दो दरबार करने लगा। दरबार में छोटे-बड़े राव-रंक प्रत्येक को आने की छूट थी। दरबार में महमूद स्वर्ण- सिंहासन पर तड़क-भड़क से अपने वज़ीरों और विद्वानों से घिरा हुआ बैठता और विविध रास-रंग और राजकाज की बात चलाता। चैत और वैशाख बीत गया। एक दिन महमूद के दरबार में चर्चा चली। प्रसिद्ध विद्वान अलबरूनी ने कहा, “खुदावन्द, यह मुल्क गुजरात तो बहिश्त-सा लगता है, यह हिन्द का बाग मशहूर है। गुजरात में कच्चा सोना उगता है, ऐसा यह लोग कहते हैं। यहाँ के लोग खुशहाल और बुद्धिमान हैं, वे बड़े ठाठ और मौज-शौक से रहते हैं। यह एक अजब बात है कि खुदा ने मूर्तिपूजक काफिरों को ऐसा सरसब्ज़ और ज़रखेज़ मुल्क दिया। क्यों न इसे इस्लामी सल्तनत का पाये-तख्त बनाया जाए!" वज़ीर अब्दुल हसन ने कहा, “यही क्यों? क्या हुजूर ने गोलकुण्डा की बाबत नहीं सुना, जिसे जवाहर-भरा मुल्क कहते हैं। जहाँ की जमीन में कंकड़-पत्थर की जगह हीरे भरे हुए हैं। गोलकुण्डा में मीलों की लम्बाई तक हीरों की खानें फैली हुई हैं। ज़मीन के पेट में इस कदर जवाहर भरा है कि एक पीढ़ी में निकाला नहीं जा सकता।" अलबरूनी ने कहा, “फिर सिंहलद्वीप है, जो वहाँ से कुछ ही फासले पर है, और उस पर बआसानी दखल किया जा सकता है। जहाँ के दरिया में दुनिया भर से अच्छे और बेशुमार मोती निकलते हैं।" महमूद ने अपने विद्वान मन्त्रियों से यह वार्तालाप सुनकर मन में अनेक बातों का विचार किया। उसके मुँह में लालच का पानी भर आया। अलबरूनी ने सुलतान का रुख देखकर फिर कहा, “अगर गुजरात को पायतख्त बनाकर एक जहाज़ी काफिला किसी बहादुर जांनिसार की मातहती में सिंहल भेजा जाए,साथ ही गोलकुण्डा पर फौजकशी की जाए तो हुजूर दुनिया के सबसे बड़े बादशाहों के रुतबे को पहुँच सकते हैं। साथ ही अनगिनत दीनदारों का भला हो सकता है। इसके अलावा मुल्क से कुफ्र दूर होकर दीने-इलाही का ज़हूर होगा।" वज़ीर ने कहा, “खुदावन्द, इस मुल्क में वक्त पर बरसात होती है, वक्त पर धान पकता है। गर्मी में ज्यादा गर्मी नहीं और सर्दी में ज्यादा सर्दी नहीं, मनपसन्द मेवा, फल और