तरकारियाँ उगती हैं। दुनिया में ऐसा मुल्क और कौन-सा है?" परन्तु महमूद के सेनापति इस राय के विरोधी थे। वे राजनीति की गम्भीरता से अज्ञान थे, वे सिपाहियों की बेचैनी से भी परिचित थे, जो अपने बाल-बच्चों से दूर विदेश में आकर अब घर लौटने को उत्सुक हो रहे थे। उन्होंने कहा- "शाहेवक्त, आलिमों की राय के बीच सिपाही को बोलना मुनासिब नहीं। मगर हुजूर, अपने मुल्क को सूना छोड़कर दौलत के लालच में परदेश में धंस जाना खतरे से खाली नहीं है। मुल्क में अपनी सल्तनत है, अपना अमल है। वहाँ अपना कबीला है, बिरादरी है। उनसे दूर रहकर दुश्मनों के इस मुल्क में जहाँ कदम-कदम पर रुकावटें हैं, फंसना गुलाम को ठीक नहीं जंचता। बिलफर्ज, हुजूर गोलकुण्डा या सिंहल पर फौजकशी करें तो बिला शक और शुबाह यह तय है कि एक बेड़ा हथियारबन्द जहाज़ की सिरेबन्दी करने में ही हुजूर का सारा खज़ाना खत्म हो जाएगा। हुजूर को यह भी न भूलना चाहिए कि अज़मेर और सोमनाथ की जंग में हमारे काफी सिपाही मारे गए हैं और सिपाही इतने दिन घर से दूर रहने से बेदिल और उतावले हो रहे हैं। हम न उन्हें तस्कीन दे सकते हैं, न उस कमी को पूरी कर सकते हैं, जो इन लड़ाइयों में हमारी हुई है। उधर दुश्मन चारों ओर से पेशबन्दियाँ कर रहे हैं। हुजूर यह न समझें कि भीमदेव चुप बैठा है, वह तमाम मुल्क में जंग की आग सुलगा रहा है, और सब राजाओं को इकट्ठा कर रहा है, ताकि हमारी वापसी की राह रोक ली जाए। और हमें घेरकर जेर कर दिया जाए। ऐसी हालत में हम, आप इन दुश्मनों से बेखबर होकर नई फौजकशी करें और खुदा ना खास्ता हमें नाकामयाबी हो तो जो नाम और शोहरत हमने पाई है, धूल में मिल जाएगी। साथ ही अपने मुल्क को हममें से एक भी आदमी ज़िन्दा न लौटने पाएगा। इसलिए खुदावन्द, मेरी अरज़ तो यह है कि जितना जल्द मुमकिन हो, हमें सब सोना, हीरा-मोती जर-जवाहर लेकर अपने मुल्क को लौट चलना चाहिए।" अपने बहादुर सिपहसालार की यह कीमती सलाह सुनकर सुलतान सोच में पड़ गया। फतह मुहम्मद के अकस्मात् गायब हो जाने और मसऊद के रहस्यपूर्ण ढंग से मारे जाने के चित्र उसकी आँखों में घूम गए। दिन बीतते गए और चातुर्मास आ लगा। किसान खेत जोतने लगे। परन्तु आषाढ़- श्रावण का मास सूखा गया, एक बूंद जल नहीं गिरा। लोग घबरा गए। दुष्काल की छाया उनके मुख पर स्पष्ट होने लगी। अन्न महँगा हो गया। गरीब भूखों मरने लगे। श्रीमन्तों ने सदाव्रत खोल दिए। परन्तु एक मास बाद तो दुष्काल चारों और मुँह फाड़कर मनुष्यों का ग्रास करने लगा। समूचे गुजरात में अकाल फैल गया। सुलतान ने अपनी फौज के लिए बहुत-सा अन्न अपने कब्जे में कर लिया। देखते-ही-देखते हज़ारों ही मनुष्य ' हा-अन्न, हा अन्न!' कहके मरने लगे। गाँव-देहात में लूट-खसोट मच गई। लोग खाद्य-अखाद्य सब खा- खाकर पटापट मरने लगे। बालक भूख के मारे माता-पिता के सामने रोते-रोते बेहोश होकर मर गए। बहुत माता-पिता पत्थर का कलेजा कर अपने बच्चों को असहाय छोड़कर भाग गए। वर्षा के लिए विविध उपाय काम में लाए जाने लगे। शिव-मन्दिरों में धूमधाम से घण्टा बजाकर आराधना प्रारम्भ हो गई। ब्राह्मणभोज होने लगे। जगह-जगह कीर्तन किए
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