पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३५२

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कंथ कोट की ओर पाटन से नल कोट तक, और आबू से झालौर तक राजपूतों की एक लाख तलवारें महमूद के स्वागत के लिए उतावली हो रही हैं, जब महमूद ने यह सुना तो उसका चेहरा भय से पीला पड़ गया। इतनी बड़ी सेना का सामना करने का साहस अब महमूद की सेना में न था। उसकी सेना में अनेक प्रकार के वहम और सन्देह घर कर गए थे। वे अब वैसे भूखे भेड़िये न थे, जैसे गज़नी के पहाड़ी इलाकों से शिकार की टोह में निकले थे। इस बार उनकी ज़ीनों में सोना, मोती, और हीरा-मुहरें ठसाठस भरे पड़े थे। और अब उनका मन युद्ध में नहीं, अपने घर जाकर मौज-मज़ा करने में लगा था। घर छोड़े उन्हें बहुत दिन हो चुके थे, वे अब पीछे लौटने को उत्सुक थे। अब वे युद्ध का खतरा नहीं उठाना चाहते थे। परन्तु घर तो अभी बहुत दूर था और तलवार की धार पर पैर रखकर ही वे लौट सकते थे। अमीर के पास भी अतोल खज़ाना था। उसकी रक्षा का प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण हो उठा था। उसके लिए वह अधीर हो उठा। फिर शोभना के प्रेम ने उसे विगलित कर दिया था।और अब वह दुर्दान्त योद्धा नहीं-आकुल-व्याकुल मिलन-आतुर प्रेमी था। जितने भी क्षण बीतते थे, उसके लिए भारी थे। वह जल्द-से-जल्द भारत की सीमा को पार कर प्रेयसी का प्रेम-प्रसाद पाकर धन्य हुआ चाहता था। इतनी बड़ी सेना से लोहा लेना आत्मघात ही था। इसलिए उसने राजपूतों की तलवारों से बचने के लिए सिन्ध की राह पकड़ना श्रेयस्कर समझा और कन्थ कोट की ओर बाग मोड़ी। भम्भर पहुँचकर उसने अपने विश्वस्त ममलूक योद्धाओं की संरक्षता में खज़ाने के हाथियों को इस्लाम कोट की ओर आगे रवाना कर दिया और आप सारा लाव-लश्कर लिए धीरे-धीरे सिन्ध में घुसा। छद्मवेशी दामो महता इसी ताक में थे। इसी क्षण तड़ित्-वेग से उनकी सांड़नियाँ चारों दिशाओं को छूटी। अभी अमीर कन्थ कोट पहुँच भी नहीं पाया था, कि उसको सूचना मिली कि भीनमाल से अमरकोट तक राजपूतों की तलवारें छा रही हैं। अजमेर के नए चौहान राजा महाराजा वीसलदेव अपने चाचा ढुण्डिराज के साथ पीलू के मैदान में उसकी राह रोके साठ हज़ार योद्धाओं के साथ महमूद के रक्त से अपने पिता धर्मगजदेव का तर्पण करने को सन्नद्ध खड़े हैं-सुनकर अमीर दाढ़ी नोंचने लगा और उसका सिर घूम गया। आज उसे सोमतीर्थ का विजेता फतह मुहम्मद और तरुण मसऊद याद आ रहे थे। उसने देखा, मेरा सारा ही खज़ाना शत्रु की डाढ़ में चला गया। एक ओर से महाराज वीसलदेव और दूसरी ओर से सांभरपति दुण्डिराज धीरे-धीरे अमीर का माल-खज़ाना लादे हुई गज-सैन्य को दबोचते इस्लाम कोट की ओर बढ़ रहे थे। इस प्रकार अमीर और उसके खज़ाने के बीच एक दीवार खड़ी हो गई थी। इसी समय उसे यह दु:खद समाचार भी मिला, कि महाराज भीमदेव अमीर की पीठ पर दबाव डालते हुए भीनमाल से आगे बढ़ रहे हैं। अब तो अमीर को चारों ओर से मृत्यु, मुँह बाए उसे समूचा निगल जाने को विकराल रूप धारण किए निकट आती दीख पड़ी। अब यही नहीं कि इतने यत्न से लूटा हुआ उसका सारा माल-खज़ाना छिन जाने