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रहेगा।"
"उसका नाम?"
"चौला।"
"चौला!"
सुलतान उठ खड़ा हुआ। उसने कहा, "मैं अभी गज़नी जाऊँगा। राह में बिखरी हुई फौज और जासूस सब उसी तरह काम करते रहें।"
"जो हुक्म।"
"हज़रत अलबरूनी क्या अभी अनहलपट्टन से नहीं लौटे?"
"रात ही लौटे हैं, वे अच्छी खबर लाए हैं।"
"ठीक है, इस वक्त वे कहाँ है?"
"नदी के उस पार, उसी झोंपड़ी में।"
"ठीक है। उनके पास घोड़ा है?"
"शायद नहीं।"
"तो मैं अब्बास का घोड़ा भी ले जा रहा हूँ, अब्बास दूसरा खरीद लेगा।"
सुलतान उछलकर अपने असील घोड़े पर सवार हुआ और दूसरे की रास काठी में बांध नदी की ओर चल दिया, उसी सूनी-अँधेरी रात में।