सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चले गए। अपने नन्हे-से कोमल हृदय में छिपाए, चण्ड शर्मा के घर के झरोखे से लाज, आनन्द और उल्लास नेत्रों में भरे अपने अधीर प्राणों को धड़कते हृदय में यत्न से रोक, यह महोत्सव देख रही थी। दामो महता अपनी चपल नीली घोड़ी पर सवार, दो-दो तलवारें कमर में बाँधे, कसूमल पाग धारण किए, पान का बीड़ा चबाए, बगुले के पर के समान धवल चुन्नटदार बागा पहने, कभी राजगजराज के इधर कभी उधर, सारे जुलूस पर नज़र डालते, आवश्यक आज्ञाएँ देते जा रहे थे। राज गजराज के पीछे एक सुनहरी हौदे में ब्राह्मण राजबन्धु चण्ड शर्मा और भस्मांकदेव बैठे बढ़ रहे थे। उनके पीछे गुजरात के प्रधानमन्त्री विमलदेव शाह की सवारी का हाथी था। विमलदेव शाह सिर से पैर तक उज्ज्वल परिधान किए, धनुष-बाण से सज्जित बैठे थे। उनके पीछे अश्व,रथ,गज,ऊँट और पैदल पलटन थी । हाट-बाजार, चौबारे, सतखण्डे महल, अटारी, बुर्ज, झरोखे, बारजे सब रंग-बिरंगी पोशाक धारण किए हुए दर्शनार्थी नर-नारियों से भरे थे। महाराज वल्लभदेव ने राज्य त्याग, तपस्वी की भाँति एकान्त जीवन व्यतीत करना पसन्द किया और वे अपने पिता महाराजाधिराज चामुण्डराय के पास शुक्ल तीर्थ दरबारगढ़ में दरबार की भव्य तैयारियाँ थीं। विविध तोरण-पताकाओं से दरबारगढ़ सजाया गया था। सब राजा-महाराजा, गिरासिए, जागीरदार, ठाकुर भायात उपस्थित थे। यथाविधि राजतिलक सम्पन्न हुआ। बन्दी जनों ने पहले पाटन का कीर्तिगान किया। राजपुरोहित ने सप्त तीर्थों का जल राजा के मस्तक पर सिंचन कर तिलक किया और घोषणा की, “ महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक उमापति श्री सोमदेव वरलब्ध प्रसाद प्रौढ़प्रताप बालार्क अट्टव पराभूत शत्रुगण श्री श्री श्री भीमदेव गुर्जरेश्वर का जयजयकार हो!" जयजयकार की प्रचण्ड गर्जना से सभा-मण्डप गूंज उठा। फिर चरणों और भाटों ने महाराज की बिरद बखानी। महाराज ने उन्हें सिरोपाव, इनाम-इकराम, जागीर-बख्शीश दी। फिर भायातों ने भेंट दी, इसके बाद जागीरदार, गिरासिए, राजा-महाराजाओं की बारी आई। महाराज भीमदेव ने युद्ध में काम आए योद्धाओं उत्तराधिकारियों और परिजनों को नई जागीरें बख्शीं। वीरों को दान-मान-खिताब से सम्पन्न किया। फिर ब्राह्मणों और धर्म संस्थाओं को दान की घोषणाएँ हुईं। इसके बाद गुर्जरेश्वर श्री भीमदेव ने खड़े होकर सबको धन्यवाद दिया, आभार माना। और धर्म की शपथ ली। प्रजा की सुख- शांति और समृद्धि की कामना की। चण्ड शर्मा और भस्मांकदेव को ‘राज्यबन्धु' की उपाधि दी गई। विमलदेव शाह राज्य के प्रधानमंत्री और दामोदर महता प्रमुख सन्धि-वैग्रहिक आमात्य घोषित किए। अन्त में नाचरंग की महफिल जमी। और राजनर्तकी के चरणाघात सजे धुंघरू बज उठे – छुम छनन ननननन... -