और कोई हुंकृति करके मूर्च्छित हो पृथ्वी पर पड़े थे। एक प्रमुख तान्त्रिक विचित्र रक्तवर्ण वस्त्र पहने नर-मुण्डों की माला गले में डाले, यज्ञकुण्ड की धधकती अग्नि के सम्मुख खड़ा था। उसके हाथों में एक मन्त्र-पूत मायावी खाण्डा था। जो लोग साल भर के भूत-प्रेतों को धागे में बांधकर लाए थे, वह उन डण्डियों को एक-एक करके ओझों से लेता, कुछ बुदबुदाकर मन्त्रपाठ करता और फिर हवा में अद्भुत रीति से खाण्डा घुमाता, तब उन भूत-प्रेतों से भरे धागों से लिपटी डण्डी को आग में झोंक देता, ओझा सन्तुष्ट होकर वहाँ से हट जाता, फिर दूसरा आगे आता। इसी प्रकार पौ फटने तक यह कार्य होता रहा। फिर सूर्योदय से प्रथम ही महाकालभैरव को उसी प्रकार जंजीरों से बाँध लाकर अंधगुहा में पहुँचा दिया गया। तान्त्रिक जन मन्दिर के प्रांगण में जहाँ-तहाँ बैठ मन्त्र पाठ करने लगे। रुद्रभद्र महाकाल की मूर्ति के साथ ही गर्भगृह में चले गए। इसी समय सोमनाथ महालय में प्रभातकालीन दुन्दुभी बजी।
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