पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बहुत खुश हूँ और आज से आप मेरे दोस्त हैं। अपनी इस दोस्ती के सिलसिले में, मैं आपको पंजाब और सिन्ध के वे इलाके देता हूँ जो अब तक मेरे कब्जे में थे। मिहरबानी करके इन्हें कबूल फर्माइए और हमेशा ऐसी ही दोस्ती कायम रखिए।" सिन्ध के इन इलाकों पर कब्ज़ा हो जाना मुलतानपति के लिए साधारण प्रलोभन न था। इससे उसका राज्य ही दूना हो गया। वह सोचने लगा, एक तरफ अमीर को नाराज़ करके विनाश को निमन्त्रण देना था, दूसरी तरफ उसे प्रसन्न करके क्षणा-भर ही में उसका राज्य दूना हो गया। उसने झुककर अमीर का अभिवादन किया और कहा, “सुलतान, यदि सचमुच ही मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो मुझे एक वचन दें, ताकि सुलतान की कृपा कभी न भूल सकूँ।" सुलतान ने कहा, “मेरे दोस्त, जो चाहते हो, अपने सुलतान से ले लो।" "तो यशस्वी सुलतान, आप हमारे इष्टदेव सूर्य के मन्दिर की रक्षा करें, उसे खण्डित न करें और मेरे मुलतान को भी अभयदान दें।" सुलतान ने कहा, “मुलतान को लूटा नहीं जाएगा, आप इत्मीनान रखिए, सिर्फ शहर के कुछ मुखियों को मेरे पास भेज दीजिए। मैं उनसे थोड़ा-सा दण्ड लेकर ही सन्तुष्ट हो जाऊँगा। वह भी सिर्फ अपनी आन कायम रखने के लिए।" राजा ने गर्दन नीची करके उदास भाव से कहा, “खैर, मगर दूसरी प्रार्थना।" "आप जानते हैं महाराज, कि मैं कुफ्र को बर्दाश्त नहीं कर सकता, और मशहूर बुतशिकन हूँ।” “जानता हूँ सुलतान, मगर सूर्यदेव के इस मन्दिर की बदौलत ही मुलतान की सारी समृद्धि, शोभा और प्रसिद्धि है। देश-देश के जो यात्री सूर्यदेव के दर्शन को आते हैं, उनकी खरीद-बिक्री से मुलतान के बीस हज़ार कारीगर और पचास दुकानदार अपनी रोज़ी-रोटी चलाते हैं। मन्दिर भंग होने से उनकी रोज़ी तो जाएगी ही, मुलतान का सारा गौरव-वैभव भी नष्ट हो जाएगा। इससे तो अच्छा यही है कि सुलतान मेरा सिर काट लें और फिर नगर को लूट-पाट कर उसमें आग लगा दें,' बूढ़े राजा ने आँखों में आँसू भरकर उत्तेजना से काँपते-काँपते ये शब्द कहे। अमीर ने तपाक से राजा का हाथ पकड़कर कहा, “नहीं दोस्त, ऐसा कभी नहीं हो सकता। महमूद अपने मिहरबान दोस्त को कभी नाराज़ नहीं कर सकता। मैं आपकी बात मानता हूँ, मगर आपको मेरा एक काम करना पड़ेगा।" “कहिए।" "लोहकोट, सपादलक्ष और झालौर के राजा आपके नज़दीकी रिश्तेदार हैं। घोघाबापा भी आपके बुजुर्ग हैं। आप इन्हें समझा-बुझाकर मुझे गुजरात की राह दिला दीजिए। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि इन राजाओं से मैं उसी तरह पेश आउँगा, जैसे आपसे। मैं उम्मीद करता हूँ कि लोहकोट, सपादलक्ष और झालौर के राजा तथा घोघाबापा भी आपकी ही तरह अपना नुकसान और फायदा समझ जाएँगे और मेरे अपना नुकसान फायदा समझ जाएँगे और मेरे रास्ते में बाधक न होंगे। मैं अपनी दोस्ती के सिले में आपके हाथों आपके इन सम्बन्धियों को मुनासिब नज़राना भी भेजना चाहता हूँ।" महाराज का धर्म-संकट बढ़ गया। वे सोच में पड़ गए। अमीर ने ज़रा तेज़ स्वर में