कहा, “मैं तो उनसे आप ही की भाँति दोस्ती का व्यवहार करना चाहता हूँ, इसे वे अस्वीकार करें तो उनकी मर्जी है। मगर औलिया ने जो राह आपको भलाई की बताई, वही आपके इन रिश्तेदारों के लिए भी है। फिर आपकी इस तकलीफ के बदले में सारा ही पश्चिमी पंजाब आपके हवाले कर दूंगा।" अछता-पछताकर निरुपाय अजयपाल को अमीर का अनुरोध मानना ही पड़ा। भय और प्रलोभन ने उसका सिर नीचा कर दिया। अमीर ने प्रसन्न-वदन सिरोपाव दे उसे बिदा किया। अब उसे राजस्थान का विकट मरुस्थल पार करना था जिसमें अनेक भौतिक और राजनैतिक बाधाएँ थीं। इस भयंकर मरुस्थल में सैकड़ों कोस तक जल का नाम-निशान नहीं था। न पेड़-पौधे या हरियाली थी, न राह-बाट। दिन में कई बार अंधड़-तूफान आते और रात-सा अन्धकार छा जाता। पर्वत के समान रेत के टीले देखते-ही-देखते इधर-से-उधर लग जाते थे। परन्तु ये भौतिक बाधाएँ तो थी ही। इस मरुस्थली के मुख पर चौहान भीष्म घोघाबापा घोघागढ़ में सतर्क बैठे थे। घोघाबापा अजयपाल के सम्बन्धी थे। मुलतान और मरुस्थली के बीच में लोहकोट में अजयपाल का भतीजा भीमपाल चौकी दे रहा था। मरुस्थली के उस छोर पर झालौर के प्रसिद्ध रावल वाक्पतिराज की चौकी थी। ये सारी बाधाएँ साधारण न थीं, पर अमीर का साहस भी साधारण न था। उसने सब ऊँच-नीच समझा-बुझाकर अजयपाल को अपने विश्वासी सेनापति सालार मसऊद और हज्जाम तिलक के साथ बहुत-सी रत्न-मणि लेकर लोहकोट, सपादलक्ष, झालौर और घोघागढ़ एक मज़बूत दस्ते के साथ भेज दिया। अजयपाल अपने पुत्र को मुलतान सौंप अमीर का दूतकर्म करने चल दिया। अब इसने इस काम से निवृत्त होकर फिर नगर पर दृष्टि डाली। अजयपाल को वह नगर न लूटने का वचन दे चुका था, लाहौर के पीर-मुर्शद का भी यही आदेश था। सूर्यदव का मन्दिर भी वह नहीं लूट सकता था, यद्यपि वहाँ की सम्पदा ने उसकी लोलुप दृष्टि को चल-विचलित कर रखा था। उसने मुलतान के प्रमुख नागरिकों के प्रतिनिधि-मण्डल को अपने सामने हाज़िर होने का हुक्म दिया। नगर के इक्कीस प्रमुख भद्र नागरिक डरते-काँपते अमीर के सम्मुख आ उपस्थित हुए। अमीर ने उनसे शान्त स्वर में कहा- “नागरिको! आप लोगों को किस मतलब से यहाँ बुलाया गया है, वह आप समझ गए होंगे। आप लोगों ने हमारा सामना नहीं किया, हमारे साथ दुश्मनी नहीं की, इसीलिए आपके नगर को लूटने या उसे हानि पहुँचाने की हमें तनिक भी इच्छा नहीं है। बस, आप लोग हमें दो करोड़ रुपया दण्ड दे दें तो हम तुरन्त यहाँ से कूच करें। यदि आप यह जुर्माना अदा करने में देर या हीला-हवाला करेंगे और अकारण हमें रोक रखेंगे, तो हमें लाचार होकर दूसरा सख्त कदम उठाना पड़ेगा। इससे बताइए, आप लोग जुर्माना अदा करने के लिए कितनी मुद्दत चाहते हैं?" सुलतान की बात सुनकर नागरिकों ने भयपूरित नेत्रों से उसे देखा और करबद्ध कहा- "हमने आलीजाह का कोई नुकसान नहीं किया, कोई कुसूर नहीं किया, फिर इतना भारी जुर्माना हमारे गरीब शहर पर क्यों? इतना भारी दण्ड मुलतान के गरीब लोग नहीं
पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/८०
दिखावट