भर सकते।" परन्तु सुलतान ऐसी धातु का नहीं बना था कि ऐसे दीन वचनों से पिघल जाए। उसने तुरन्त उन प्रमुखजनों को कैद करने की आज्ञा दे दी तथा उन्हें भूखा-प्यासा रहने दिया। परन्तु प्रमुख नागरिक यह कष्ट भोग कर भी दण्ड देने में अपनी असमर्थता दिखाते रहे। अली अब्बास ने अमीर को कुछ दण्ड कम करने का परामर्श दिया, पर अमीर ने वह स्वीकार नहीं किया और नागरिकों पर अत्याचार करना प्रारम्भ कर दिया। उन्हें चित लिटाकर उनकी छाती पर पत्थर रखवाए। फिर उन्हें धूप में टांगें फैलाकर खड़ा कर दिया। राजा नगर छोड़कर भाग गया है और अमीर नगर के प्रमुखों पर अत्याचार कर रहा है, यह अफवाह नगर में फैल गई। लोग चारों ओर से सिमटकर सूर्यदेव के पुजारी सोमदेव के पास पहुँचे। सोमदेव की अवस्था अस्सी को पार कर गई थी। उन्होंने पूरे आठ वर्ष तक सूर्यदेव की आराधना की थी। नागरिकों को भयभीत और अरक्षित देख सौमदेव स्वयं सुलतान के पास गए, परन्तु अमीर ने उनका भी अनुरोध नहीं माना। इस पर सोमदेव ने मन्दिर का सब धन-रत्न, दण्ड में देकर नगर के प्रमुख जनों को मुक्ति दिलाई। अनायास ही केवल इतने ही धूम-धमाके से इतनी भारी रकम पाकर अमीर प्रसन्न हो गया। अब उसने मरुस्थली की दिशा में प्रयाण करने की अविलम्ब तैयारियाँ कीं। उसने सारी सेना की परेड की। उसका नए सिरे से संगठन किया। नए दल, नए सेनापतियों को बाँटे। मरुस्थली पार करने के सब उपलब्ध साधन जुटाए। पाँच सौ हाथियों पर बहुत-सी खाद्य सामग्री और बीस हज़ार ऊँटों पर पीने का पानी साथ ले उसने मरुस्थली पर बाग उठाई, जिसके एक नाके पर गृध्र की सी दृष्टि जमाए मरुस्थली के भीष्म घोघाबापा बैठे हुए थे और उस छोर पर झालौर के महावीर वृद्ध व्याघ्र रावल वाक्पतिराज की चौकी थी, जिसमें सैकड़ों कोस तक जल का नाम-निशान न था। न पेड़, न पौधे, न हरियाली, न राह- बाट। जहाँ मृत्यु रेत और आँधी से आँख-मिचौनी खेलती थी।
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