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सौ अजान और एक सुजान


हुए तारे अपने स्वामी निशानाथ के प्रसन्न करने को निशा-वधूटी के लिये उपहार बन रहे हैं। यहाँ कन्या के सूर्य के प्रचंड आतप में कीचड़-पानी सूख जाने से स्वच्छ हो, छिटकी हुई चाँदनी के मिस हँसती-सी धरती फूले हुए कल्हार, गुलनार, कुई, कुंद आदि भाँति-भाँति के फूलों का गहना सजे, उसी निशा नई दुलहिन को मुँह-देखाई देने को प्रस्तुत है। ऐसे समय अरबी घोड़े पर सवार एक आदमी देख पड़ा, भेष इसका सिपाहियाना था; उमर में यद्यपि ५० के ऊपर डाँक गया था, पर डीलडौल से ४० के भीतर मालूम होता था। बाल इसके दो-एक कहीं-कहीं पर पक गए थे सही, किंतु उतने से यह किसी को नहीं बोध होता था कि यह तरुनाई से ढुलक चला है। नई उमर का जोश, साहस, हिम्मत और दिलेरी में यह चढ़ती उमरवाले जवानों के भी आगे बड़ा था, और ये ही सब बाते मानो साखी भर रही थीं कि कचलपटी और छिछोरपन से यह कहाँ तक दूर हटा हुआ है। पढ़ा-लिखा यह कुछ न था, पर जैसी कुछ मुस्तैदी इसमें देखी जाती थी, उससे स्वामिभक्ति इसके चेहरे से झलक रही थी। चौड़ी छाती और बदन की मजबूती से यह क्षत्रिय मालूम होता था, और डील का न बहुत नाटा था न बहुत लंबा। कुछ ऊंघता अलसाता-सा काग़ज का एक पुलिंदा हाथ में लिए लंबे-चौड़े पक्के मकान के फाटक पर आकर यह खटखटाने लगा। दासी ने आय किवाड़ खोल कहा---"बाबू सोवत हैं।" इसने