पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/११२

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उन्नीसवॉ प्रस्ताव

के पवित्र नामोच्चारण में प्रवृत्त हैं; कोई शौच कर्म के लिये हाथ में सोंटा और लोटा लिए बहिर्भूमि को जा रहे है; कोई दंत- धावन के लिये वृक्ष की डालियॉ तोड़ रहे हैं; कोई अपने छोटे- छोटे बालकों को गुरूजी के यहॉ ले जा रहे हैं,कोई मचलाए हुए लड़कों को फुसला रहे हैं; खेतिहर बैल और हल लिए खेत की ओर जा रहे हैं।

ऐसे समय सुजानसिह दारोगा तीन कांस्टेबिल साथ लिए बावू की कोठी के द्वार पर यमदूत-सा,आ बिराजे, और यही कोशिश में थे कि ज्यों ही दोनो बाबुओं में से कोई भी बाहर निकले कि उन्हे वारेट दिखा गिरफ्तार कर ले।

बावुओं की हवेली के पिछवाड़े खिड़की-सा एक छोटा दरवाजा जनाने मकान का था। हीराचद के समय तो बीसों दास-दासी भोर ही से अपने-अपने टहल के काम मे लग जाते थे, पर वह तो अब किस्सा-किहानी की बात हो गई। पर अब भी मखनिया नाम की पुरानी चाकरानी, जो हीराचद की स्त्री के बहुत मुॅह लगी थी. पुराना घर समझ अव तक टहल के काम से लगी ही रही। यह मखनिया हीराचंद का समय देख चुकी थी। बाबुओ के जघन्य आचरण पर मन ही मन कुढती थी। कोठी के दरवाजे पर पुलिस को बैठे देख खिड़की को धीरे से खटखटाया। सेठानी निकल आई, और किवाडा खोल इसे भीतर ले गई। इसे भौचक्की-सी देख कारण पूछा, तो यह कहने लगी–"बहूजी, आज काहे दुवार पर पुलिस