पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/१२८

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१२७ टिप्पणी-सहित कठिन-शब्दार्थ-सूची सिद्धांत के अनुसार जहाँ सूर्य, सौजन्य - सुमन-साधुतारूपी चंद्रमा श्रादि ग्रह अस्त फूल। (छिप) हो जाते हैं। कुसुमाकर-वसंत; वाटिका । उदयगिरि-वह पर्वत, जहाँ रीझ गए-प्रसन्न हो गए। 'से सूर्य आदि ग्रह उदय पट्टशिष्य-मुख्य शिष्य । होते है। अनुहार-समानता। उपशम-शांति । वाक्पाटव-बोलने में चतुराई। चौथा प्रस्ताव बेइंतिहा-असंख्य । जहाँ दो चीज़ों के बीच से कार्य आकृति-शकल, सूरत। और कारण का संबंध होता है। "मानो . ...महीने हैं अंक-चिह्न; चंद्रमा में कलंक । यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकारों की सामुद्रिकशास्त्र-ज्योतिषशास्त्र एक लडी है, जिसमें रूपक का एक अंग, जिससे हस्त-रेखा अलंकार भी गौण रूप से । आदि का विचार किया विद्यमान है। जाता है। . थैसुधात सागर पुण्य का सामुद । समाय सकेसमा सके (इस बीजांकुर -न्याय-बीज और तरह का रूप भी भट्टजी की अंकुर में जो परस्पर में संबध हिंदी की खास विशेषता है। है, उसी को देखकर इस न्याय इसी तरह से "जाय सके", की उत्पत्ति हुई है, अर्थात् "खाय सके" इत्यादि)। बीज अंकुर का कारण है, उसी लल्लोपत्तो-चापलूसी, खुशा- तरह से अंकुर भी बीज का भद। कारण है। यह न्याय ,ऐसे खुचुर-(सं० कुचर ) व्यर्थ स्थान पर व्यवहार होता है, का दोष निकालना ।