उदयगिरि—वह पर्वत, जहाँ से सूर्य आदि ग्रह उदय होते है। उपशम—शांति।
सौजन्य-सुमन—साधुतारूपी फूल। कुसुमाकर—वसंत; वाटिका। रीझ गए—प्रसन्न हो गए। पट्टशिष्य—मुख्य शिष्य। अनुहार—समानता। वाक्पाटव—बोलने में चतुराई।
चौथा प्रस्ताव
बेइंतिहा—असंख्य। आकृति—शकल, सूरत। "मानो……महीने हैं"—यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकारों की एक लड़ी है, जिसमें रूपक अलंकार भी गौण रूप से विद्यमान है। सुकृत-सागर—पुण्य का समुद्र। बीजांकुर-न्याय—बीज और अंकुर में जो परस्पर में संबध है, उसी को देखकर इस न्याय की उत्पत्ति हुई है, अर्थात् बीज अंकुर का कारण है, उसी तरह से अंकुर भी बीज का कारण है। यह न्याय ऐसे स्थान पर व्यवहार होता है, जहाँ दो चीज़ों के बीच से कार्य और कारण का संबंध होता है।
अंक—चिह्न; चंद्रमा में कलंक। सामुद्रिकशास्त्र—ज्योतिषशास्त्र का एक अंग, जिससे हस्त-रेखा आदि का विचार किया जाता है। समाय सके—समा सके (इस तरह का रूप भी भट्टजी की हिंदी की खास विशेषता है। इसी तरह से "जाय सके", "खाय सके" इत्यादि)। लल्लोपत्तो—चापलूसी, ख़ुशामद। खुचुर—(सं॰ कुचर) व्यर्थ का दोष निकालना।