सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२९
टिप्पणी-सहित कठिन-शब्दार्थ-सूची

तरल तरंगिणी-तुल्य—चंचल नदी के समान।
तारुण्यकुतर्की—जवानीरूपी दुष्ट बकवादी।
चोखा (चोक्ष)—शुद्ध और उत्तम।
अज़हद—बहुत अधिक।
तिउरी—निगाह, दृष्टि।

बरहम—क्रोधित।
रब्तज़प्त—मेलजोल।
तक़रीब—(अं॰-शब्द) उत्सव, जलसा।
शीशे आलात—(फा॰-शब्द) शीशे के यंत्र—झाड़, फानूस आदि।

 

छठा प्रस्ताव

सन्नहटा—नीरव, शब्दाभाव।
तिग्मांशु—(तिग्म=तेज़। अंशु=किरण) सूर्य।
तीखी—(सं॰ तीक्ष्ण) तेज़।
खरतर—तेज़।
ब्रह्मांड—जगत्, संसार।
तचा—तप्त।
लोहपिंड—लोहे का गोला।
अनुहार—समानता।
स्थावर—अचल, स्थिर, जो चले नहीं, जैसे पेड़ इत्यादि।
जंगम—चलनेवाला, चरिष्णु, जैसे मनुष्य, पशु इत्यादि।
यावत्—जितने।
त्वगिंद्रिय—स्पर्शेंद्रिय, जिस इंद्रिय से स्पर्श का ज्ञान हो।

शीतस्पर्शवत्याप—कणाद मुनि ने पाँचों तत्वों में से जल तत्व की परिभाषा में लिखा है कि जल वह तत्व है, जो छूने में शीतल हो।
दंडायमान—लंबा।
ललाटंतप—ललाट (खोपड़ी) को तपानेवाला, अत्यंत गरम, चैलाफाढ़ घाम।
चडांशु—(चंड=तेज, गरम। अंशु-किरण) सूर्य।
उच्चाटन—तंत्र के छै अभिचारी या प्रयोगों में से एक; नाश।
रूपगर्विता—अपने सुंदरापे के घमंड में भरी हुई।