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पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/५५

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सौ अजान और एक सुजान

से बरतती हैं कि उन्हें किसी तरह का क्लेश न हो, और सब भाँति अपने बस की भी हो जायँ। सास यदि फूहर और गँवार हुई, तो दोनो में दिन-रात की कलकल और दाँताकिट-किट हुआ करती है। इस हालत में वह घर नहीं, वरन् नरक का एक छोटा-सा नमूना बन जाता है। इस रमा का क्या कहना है, यह तो मानो साक्षात् कोई देवी थी। स्त्रियों के दुर्गुणों की इसमें छाया तक न आई थी। इसने अपनी दोनो बहुओं को ऐसे ढंग से रक्खा कि वे दोनों इसकी अत्यंत भक्त और आज्ञाकारिणी हुईं, और आपस में ऐसा मिल-जुलकर रहती थी कि बहन-बहन मालूम होती थी। यह कोई नहीं कह सकता कि ये देवरानी-जेठानी हैं। ससुरार के सुख के सामने मायके को ये दोनों बिलकुल भूल गईं। पाठकजन, हम आशा करते हैं, आप लोगों को ऐसी ही रमा की-सी घर की पुरखिन और दो सुशीला बहुओं की-सी बहू मिलें, जैसी सेठ हीराचंद और इन दोनो बाबुओं को मिली हैं।



दसवाँ प्रस्ताव
संगत ही गुन ऊपजे, संगत ही गुन जाय।

हीराचंद के घर से दस घर के फासिले पर कुछ कच्चा कुछ पक्का एक मकान था। उसमें नंददास नाम का एक मनुष्य रहता था। यह कौन था, और कब से यहाँ रहता था,