पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/६६

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ग्यारहवाॕ प्रस्ताव

के टोंट-सी या तिल के पुष्प-सी नासिका गोल कपोल, सुदर आँख, रेशम के लच्छे-से सिर के बाल, सब मिल इसके चेहरे पर एक अनोखी छवि दरसा रहे थे। यह अपने को हुमा वेगम के नाम से प्रसिद्ध किए थी। यह हुमा केवल खूबसूरती और शऊर में ही एकता न थी, कितु गाना- बजाना इत्यादि कई तरह के हुनर में भी अपनी सानी न रखती थी।अनंतपुर-ऐसे छोटे-से कस्बे में तो इस कोकिलकठी के सौंदर्य और गाने की धूम थी।यद्यपि यहाँ के छोटे-बड़े रईस सभी इसके मुश्ताक हो रहे थे, कितु नदू तो इस पर तन-मन से लट्टू था।अपने मामूली काम-काज से फुरसत पाते ही वहाँ पहुँचता था । हुमा भी, जो शऊर और ढंगदारी में पल्ले दर्जे की चालाक थी, इसकी नस-नस पहचान गई थी, और इसे अपना खेलौना बनाए थी।अस्तु।उच्च पद से नीचे गिरते हुए मनुष्य की हजार-हजार तदबीर सब व्यर्थ होती है । सूर्य जब डूबने लगता है, तो उसे हजार किरने सब एक साथ थामती हैं, पर वह नहीं रुकता, इसी तरह डूबते हुए इन बाबुओ को सम्हाल रखने को चदू तथा रमा ने कितनी-कितनी तदबीरे और यतन किए, कितु एक भी कारगर न हुए, अत को विष की गॉठ-सी यह हुमा ऐसी यहाँ आ बसी कि नंदू-सरीखे कुढगियों को अपने ढंग पर इन बाबुओं को दुलका लाने और गढ़कर अपना ही-सा बना देने के लिये मानो औजार हुई। मसल है "एक तो तित लौकी, दूसरे चढी