नीम" ये बाबू लोग तो यों ही यौवन और धन के मद से अंधे हो रहे थे । चंदू-सरीखें चतुर, सयाने, प्रवीण के उपदेश का बीज लाख-लाख तरह पर उलटी-सीधी बात सुझाने से कभी-कभी जम आता था, तो चारो ओर से दुःसंग ओले के समान गिर उस टटके जमे हुए अंकुर का कहीं नाम और निशान भी न रहने देते थे । इसी दशा में रूप-राशि हुमा ने अपने रूप का ऐसा गहरा जादू इन पर छोड़ा कि अब फिर सम्हलने की कोई आशा न रही । पर चंदू इनकी ओर से सर्वथा निराश न हुआ था, यह इन्हें बार-बार सीधी राह पर लाने की फिकिर में लगा ही रहा । सौ अजान में एक सुजान पर ध्यान जमाए हमारे पाठक यदि हमारे साथ ऐसे ही धीरे-धीरे चले चलेगे, तो अंत को एक बार चंदू को कृतकार्य होते पावें हींगे।
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बारहवाँप्रस्ताव
धूतैर्जगहच्यते[१]
अनंतपुर में छोटे-छोटे मुक़दमों की काररवाई के लिये तीसरे दरजे की मुंसिफी, तहसीली की कचहरी और पुलिस का एक थाना के सिवाय और कुछ न था। फौजदारी तथा दीवानी के जो कोई भारी और पेचीदा मुक़द्दमें होते थे,सब वहाँ के जिले की कचहरी लखनऊ में भेज दिए जाते थे।
- ↑ धूर्त लोग संसार को ठगते है।