पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/७४

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बारहवाॕ प्रस्ताव

के घराने के बिगड़ने के लिये उलटी माला-सी फेर रहे थे। चंदू अलबत्ता बाबुओं को राह पर लाने की फिकिर मे लगा ही रहा। छिपा-छिपा रोज-रोज का इन दोनो का सब रंग-ढंग तजवीजा किया, और अपने भरसक छल-बल-कल से न चूका, जब-तब आकर रमा को भी ढाढ़स दे जाता था। रमा का मन तो यद्यपि इन लडकों की ओर से बिलकुल बुझ-सा गया था, पर यह अब तक हिम्मत वॉधे था कि इन दोनो को राह पर एक दिन अवश्य ही लाऊँगा, किंतु जब तक ये गदहपचीसी के पार न होंगे, और नई उमर का तकाजा ज्वर के समान चढ़ा रहेगा, तब तक इनका ढंग से होना दुर्घट है। उसे विश्वास था कि यदि बडे सेठ साहब की सुकृत की कमाई है, और वह सिवाय भले कामों के मन से कभी किसी बुरी बात की ओर नहीं गए, तो संभव नहीं कि उनकी औलाद पर उस भलाई का असर न पहुँचे। यह कहावत कि 'बाढ़ै पूत पिता के धर्मे" कभी उलटी होगी ही नहीं। चंदू इसी फिकिर में था कि किसी तरह नंदू से बाबुओं का लगाव छूट जाता, तो इन दोनों का ढंग से हो जाना कुछ कठिन न होता। इधर नंदू भी मन में खूब समझे हुए था कि यह पंडित मेरा पक्का दुश्मन है । यह यहाँ का रहनेवाला नहीं, एक अजनवी पर- देशी ने ऐसा कदम जमा रक्खा है कि बड़ी सेठानी बहू मा जो यह कहता है, वही करती हैं ; नहीं तो जैसा मैंने बाबू को काठ का उल्लू बनाय अपने ताबे में कर छोड़ा था, वैसा ही