पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/८८

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पंद्रहवाॅ प्रस्ताव

कुंज वृदावन की शोभा का अनुहार करते थे। संगमर्मर की रविशों पर जगह-जगह फौवारेजेठ-वैशाख की तपन मे सावन- भादों का आनंद बरसा रहे थे। एक ओर इस बाग के बड़ी लंबी-चौड़ी बारहदुवारी थी, जिसमें हीराचंद नित्य अपने काम-काज से सुचित्त हो संध्या को यहाँ आते थे, पंडित, साधु, अभ्यागत तथा गुणी लोगों से यहीं मिलते थे. और अपने वित्त के अनुसार सबों का थोड़ा या बहुत, जो कुछ हो सकता सत्कार-सम्मान करते थे। अस्तु । हीराचंद की बात उन्ही के साथ गई, अब उसको गाई गीत के समान फिर-फिर गाने से लाभ क्या ?

आगे के दिन पाछे गए, हरि से कियो न हेत ,

अब पछिताए क्या भया, चिडियाचुन गई खेत । ,

जिस फलवत धरती मे अमृत रसवाले दाखफल और केसर उपजते थे, उसी मे काल पाय ऊँटकटारे और अनेक कटैले पेड़ जम आए, तो इसमें अचरज की कौन-सी बात है ! कालचक्र की गति सदा एक-सी रहे, तो वह चक्र क्यों कहा जाय-"नी- चैर्गच्छत्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण ।"

गत. स कालो यत्रास्ते मुक्तानां जन्म बल्लिषु ;

उदुम्बरफलेनापि स्पृहयामोऽधुना वयम् ।


("उदुम्बरफलेनापि" के स्थान पर "उदुम्बरफलेभ्योऽपि" पढिए) वह समय गया, जब लताओं मे मोती पैदा होते थे। अब तो गूलर के भी लाले पड़े हैं।