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पंचम अंक
 


समान क्रीड़ा करते-करते हम लोग तिरोहित हो जायँ। और उस क्रीड़ा में तीव्र आलोक हो, जो हम लोगों के विलीन हो जाने पर भी जगत् की आँखों को थोड़े काल के लिये बन्द कर रक्खे। स्वर्ग की कल्पित अप्सराएँ और इस लोक के अनंत पुण्य के भागी जीव भी जिस सुख को देखकर आश्चर्यचकित हों, वही मादक सुख, घोर आनन्द, विराट विनोद, हम लोगों का आलिङ्गन करके धन्य हो जाय!--

अगरु-धूम की श्याम लहरियाँ उलझी हों इन अलकों से
मादकता-लाली के डोरे इधर फँसे हो पलकों से

व्याकुल बिजली-सी तुम मचलो आर्द्र-हृदय-घनमाला से
आँसू बरुनी से उलझे हों, अधर प्रेम के प्याला से

इस उदास मन की अभिलाषा अँटकी रहे प्रलोभन से
व्याकुलता सौ-सौ बल खाकर उलझ रही हो जीवन से

छवि-प्रकाश-किरणें उलझी हों जीवन के भविष्य तम से
ये लायेंगी रङ्ग सुलालित होने दो कम्पन सम से

इस आकुल जीवन की घड़ियाँ इन निष्ठुर आघातों से
बजा करे अगणित यन्त्रों से सुख-दुख के अनुपातों से

उखड़ी साँसे उलझ रही हों धड़कन से कुछ परिमित हो
अनुनय उलझ रहा हो तीखे तिरस्कार से लांछित हो

यह दुर्बल दीनता रहे उलझी फिर चाहे ठुकराओ
निर्दयता के इन चरणों से, जिसमें तुम भी सुख पाओ

(स्कन्द के पैरों को पकड़ती है)-

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