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स्कंदगुप्त
 


मुद्गल--महादेवी ने प्रार्थना की है कि युवराज भट्टारक को कल्याण-कामना के लिये चक्रपाणि भगवान की पूजा की सब सामग्री प्रस्तुत है। आर्य्यपुत्र कब चलेंगे?

कुमार०—( मुँह बनाकर ) आज तो कुछ पारसीक नर्त्तकियाँ आनेवाली है आपानक भी है ! महादेवी से कह देना, असंतुष्ट न हो, कल चलूँगा ! समझा न मुद्गल ?

मुगल--( खड़ा होकर ) परमेश्वर परम भट्टारक की जय हो !

( जाता है )

धातुसेन—वह चाणक्य कुछ भाँग पीता था। उसने लिखा है। कि राजपुत्र भेड़िये है, इनके पिता को सदैव सावधान रहना चाहिये।

कुमार०--यह राष्ट्र-नीति है ।

(अनन्तदेवी को चुपचाप प्रवेश)

धातु०--भूल गया । उसके बदले उस ब्राह्मण को लिखना था कि राजा लोग व्याह ही न करे, क्यों भेड़ियो-सी संतान उत्पन्न हो ?

अनन्तदेवी--( सामने आकर ) आर्यपुत्र की जय हो !

( धातुसेन भयभीत होने का-सा मुंह बनाकर चुप हो जाता है )।

कुसार०—आओ प्रिये ! तुम्हें खोज ही रहा था ।

अनन्त--नर्त्तकियों को बुलवाती आ रही हूँ। कुमारामात्य आदि थे, मन्त्रणा में बाधा समझकर, जान-बूझकर देर लगाई। आपको तो देखती हूँ कि अवकाश ही नहीं ।

( धातुसेन की और क्रुद्ध होकर देखती है )

कुमार०—वह अबोध विदेशी हँसोड़ है ।

अनंत०--तब भी सीमा होनी चाहिये ।

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