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विक्रमादित्य
 

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विक्रमादित्य | चल रहा था । राजनी के शको को भी इसी कारण अपना देश छोड़कर रावी और चनाब के बीच में ' शाकल' बसाना पड़ा। मिथोडोटस द्वितीय आदि के शासनकाल में भारतवर्ष का उत्तरपश्चिमीय भू-भाग बहुत दिनो तक इन्हीं शको के अधिकार में रहा । कभी पार्थियन, कभी शक और कभी युवेची-जाति की प्रधानता हो जाती थी। उसी समय में मालवों को पराजित करके शकेां ने पंजाब में अपने राज्य की स्थापना की । स्मरण रखना होगा कि मालव से यहाँ उस राष्ट्र का संवैध है जो ‘पाणिनि' के समय में मालव-क्षुद्रक-गण कहे जाते थे, और सिकंदर के समय | में वे *malloi And azodrakai' के नाम से अभिहित थे । इस प्राचीन मालव की सीमा पंजाब में थी। विक्रमादित्य और |शको का प्रथम कहरूर-युद्ध मुलतान से ५० मील दक्षिण-पूर्व में हुआ, और फिर शालिवाहन के नेतृत्व में शकों के आक्रमण से | मालवों को दक्षिण की ओर हटना पड़ा । संभवतः वर्तमान | मालव देश उसी काल में मिलाया गया, और जहाँ पर इन मालवों ने शको से पराजित होकर अपनी नई राजधानी बनाई, वह मंदसार और उज्जयिनी थी। शालिवाहन की इस विजय के बाद इसीके वंश के लोग राजस्थान से होते हुए सौराष्ट्र तक फैल गये, और वे पश्चिमीय क्षत्रप के नाम से प्रसिद्ध हुए। चष्ठन और नहपान आदि दक्षिण तक इसकी विजय-वैजयंती ले गये । नहपान को कुंतलेश्वर | सातकर्णि ने पराजित किया । * कथासरित्सागर' से पता चलता है कि भरुकच्छ देश से भी शको की सत्ता सातकणि ने उठा दी, | और • कालाप' व्याकरण के प्रवर्तक शर्ववर्मा को वहाँ का राज्य

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