पृष्ठ:स्कंदगुप्त.pdf/२२७

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स्कंदगुप्त
 

स्कंद्गुप्त कथा-सरिस्सागर * और * हर्षेचरित * से लिये गये अव- तरणों पर ध्यान दे्चे से यह बिदित होता है कि यह शक-विजय किसी छल से भिली थी । तुआर या ( शिवप्रसाद के मता- उुसार पवॉर ) मालव-गण के प्रमुख अधीश्वर से भिन्न यह पाटलिपुत्र का विक्रभादित्य चन्द्रगुप्त था, जिसका समथ ३८५ (४००? ) ले प्रारंभ होकर ध१३ ई० तक था । है कुछ लोगों का मत है कि सालब का यशोधम्मेवे्व तीसरा विक्रमादित्य था; परन्तु जिस राजतरंगिणी " से इसके विक्रमा- वित्य होने का श्रसाण दिया जाता है उसमें यशोधमे के साथ विक्रम' शब्द् का कोई उल्लेख नहीं है । उसके शिलालेखों, सिको में भी इसका नाम नही है । यशोधमें के जयस्तंभ सें हूण सिहिरकुल को पराजित करते का प्रसाण मिलता है, परंतु यह शकारि नहीं था । यह अनुसान् भी भ्रांत है कि इसी यशोधरमंदेव ते सालव-संवत् के साथ का प्रचार किया, क्योंकि उसीके अनुचरों के शिलालेख में मालव-गाणस्थिति का स्पष्ट उल्लेख है- विक्रम तास जोड़कर विक्रम-संवत्

  • घिंचसु तेलु शरदा थातष्वेकान्वति सहितेपु

सालवगणस्थितिबरशात् कालतानाय लिखितेथु ! अलवेरूनी के लेख से यह भ्रस फैला है, परन्तु वही अपती पुस्तक से दूसरी जगह कहरू-युद्ध के विजेता विक्रसादित्य से संवद्-प्रचारक विऋ्रमादित्य को भिन्न सानकर अपनी भूल स्त्रीकार करता है । डाक्टर हानेलो अौर स्मिथ कहरूर-्युद्ध के

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