पृष्ठ:स्कंदगुप्त.pdf/२४२

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कालिदास
 

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कालिदास है, क्योंकि इसमें पहले विष्णु की स्तुति के रूप में मंगलाचरण किया गया है; परन्तु यह तर्क निस्सार है । कारण, * रघुवंश' में भी विष्णु की स्तुति कालिदास ने की है और * सेतुबंध' में तो स्पष्ट रूप से लिखा मिलता है कि * इअ सिरि पवर सेण विरइए कालिदास कए। जब यह काव्य प्रवरसेन के लिये बनाया गया तो यह आवश्यक है कि उनके आराध्य विष्णु की स्तुति की जाय। प्रवरसेन ने 'जयस्वामी' नामक विष्णु की मूर्ति बनवाई थी। वस्तुतः कालिदास के लिये शिव और विष्णु में भेद नहीं था। जैसा कि हम ऊपर कह आये हैं, 'शाकुंतल' के प्राकृत से ‘सेतुबंध की प्राकृत अत्यंत अर्वाचीन है। इसलिये उसे काव्यकार कालिदास का मान लेने में कोई आपत्ति नहीं है। कालिदास के संस्कृत-काव्यों तथा इस महाराष्ट्री-काव्य में कल्पना-शैली और भाव का भी साम्य है। कुछ उदाहरण लीजियेवैदेहि पश्यामलयाद्विभक्तमत्सेतुनाफेनिलमम्वुराशिम् -( रघुवंश ) दोसइ सेउ मह वह दोहाइ पुव्व पच्छिम दिसा भाअम् -( सेतुबंध ) + + + + छायापर्थेनेव शरत्प्रसन्नमाकाशमाविष्कृतचारुतारम -( रघुवंश ) मलप्रसुवेलालग्गो पहिडिओ णहणि हम्मि सागरसलिले –( सेतुबंध ) + + +

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