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प्रथम अंक
 

शर्व॰--(चौंककर) इसका तात्पर्य्य?

भटार्क--(गम्भीरता से) तुमको महाबलाधिकृत की आज्ञा पालन करनी चाहिये।

शर्व॰--तब भी क्या स्वयं महादेवी पर नियंत्रण रखना होगा?

भटार्क--हाँ।

शर्व॰--ऐसा!

भटार्क--ऐसा ही।

(कोलाहल, भीषण उल्कापात)

भटार्क--ओह, ठीक समय हो गया! अच्छा, मैं अभी आता हूँ।

(द्वार खोलकर भटार्क भीतर जाता है)

(रामा का प्रवेश)

रामा--क्यों, तुम आज यहीं हो?

शर्व॰--मै, मैं, यही हूँ; तुम कैसे?

रामा--मूर्ख! महादेवी सम्राट को देखना चाहती हैं, परन्तु उनके आने में बाधा है। गोबर-गणेश! तू कुछ कर सकता है?

शर्व॰--मैं क्रोध से गरजते हुए सिंह की पूँछ उखाड़ सकता हूँ, परन्तु सिंहवाहिनी! तुम्हे देखकर मेरे देवता कूच कर जाते हैं!

रामा--(पैर पटककर) तुम कीड़े से भी अपदार्थ हो!

शर्व॰--न न न न, ऐसा न कहो, मै सब कुछ हूँ। परन्तु मुझे घबराओ मत; समझाकर कहो। मुझे क्या करना होगा?

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