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स्कंदगुप्त
गोविन्द०--( ऊपर देखकर ) वीरपुत्र है। स्कन्द! आकाश के देवता और पृथ्वी की लक्ष्मी तुम्हारी रक्षा करें। आर्य्य-साम्राज्य के तुम्ही एकमात्र भरोसा हो।
मुद्गल--तब महाराज-पुत्र! बड़ी भूख लगी है। प्राण बचते ही भूख का धावा हो गया, शीघ्र रक्षा कीजिये!
गोविन्द०--हाँ हाँ, सब लोग चलो।
[सब जाते हैं]
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