जयमाला--नाथ ! तब क्या मुझे स्कंदगुप्त का अभिनय करना होगा? क्या मालवेश को दूसरे की सहायता पर ही राज्य करने का साहस हुआ था? जाओ प्रभु! सेना लेकर सिंह-विक्रम से सेना पर टूट पड़ो! दुर्ग-रक्षा का भार मैं लेती हूँ।
विजया--महाराज! यह केवल वाचालता है। दुर्ग-रक्षा का भार सुयोग्य सेनापति पर होना चाहिये।
बन्धुवर्मा--घबराओ मत श्रेष्ठ-कन्ये!
जयमाला--स्वर्ण-रत्न की चमक देखनेवाली आँखें बिजली-सी तलवारों के तेज को कब सह सकती है। श्रेष्ठि-कन्ये! हम क्षत्राणी हैं, चिरसङ्गिनी खङ्लता को हम लोगो से चिर-स्नेह है।
बन्धुवर्म्मा–प्रिये! शरणागत और विपन्न की मर्य्यादा रखनी चाहिये। अच्छा, दुर्गं का तो नही, अंतःपुर का भार तुम्हारे ऊपर है।
देवसेना--भइया, आप निश्चिन्त रहिये।
बंधुवर्म्मा--भीम दुर्ग का निरीक्षण करेगा; मैं जाता हूँ।
( जाता है )
विजया–भयानक युद्ध समीप ही जान पड़ता है, क्यों राजकुमारी!
देवसेना--तुम वीणा ले लो तो मैं कुछ गाऊँ।
विजया--हँसी न करो राजकुमारी!
जयमाला--बुरा क्या है?
विजया---युद्ध और गान!
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