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द्वितीय अंक
 


सिंहासन कब तक सूना रहेगा? पुष्यमित्रों और शकों के युद्ध समाप्त हो चुके है।

स्कंद०--तुम मुझे उत्तेजित कर रहे हो।

चक्र०--हाँ युवराज! मुझे यह अधिकार है।

स्कंद०--नहीं चक्र! अश्वमेध-पराक्रम स्वर्गीय सम्राट कुमार-गुप्त का आसन मेरे योग्य नहीं है। मै झगड़ा करना नहीं चाहता, मुझे सिंहासन न चाहिये। पुरगुप्त को रहने दो। मेरा अकेला जीवन है। मुझे......

चक्र०--यह नहीं होगा। यदि राज्यशक्ति के केन्द्र में ही अन्याय होगा, तब तो समग्र राष्ट्र अन्यायों का क्रीड़ा-स्थल हो जायगा। आपको सबके अधिकारों की रक्षा के लिये अपना अधिकार सुरक्षित करना ही पड़ेगा।

( चर का आना, कुछ संकेत करना, दोनों का प्रस्थान, देवसेना और विजया का प्रवेश । )

विजया--यह क्या राजकुमारी! युवराज तो उदासीन हैं।

देवसेना--हाँ विजया, युवराज की मानसिक अवस्था कुछ बदली हुई है।

विजया--दुर्बलता इन्हें राज्य से हटा रही है।

देवसेना--कहीं तुम्हारा सोचा हुआ, युवराज के महत्त्व का परदा तो नहीं हटा रहा है? क्यों विजया! वैभव का अभाव तुम्हें खटकने तो नहीं लगा है।

विजया--राजकुमारी! तुम तो निर्दय वाक्यबाणों का प्रयोग कर रही हो।

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