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द्वितीय अंक
 


देवसेना--तब उन्हें जाना आवश्यक होगा। भाभी बुलाती हैं क्या?

बंधुवर्म्मा--हाँ, उनकी विदाई करनी होगी। संभवतः सिंहासन पर बैठने का राज्याभिषेक का--प्रकरण होगा।

देवसेना--क्या आपको ठीक नहीं मालूम'?

बंधुवर्म्मा--नही तो; मुझसे कुछ कहा नहीं। परन्तु भौंहों के नीचे एक गहरी छाया है, वात कुछ समझ में नहीं आती।

देवसेना--भइया, तुम लोगों के पास बातें छिपा रखने का एक भारी रहस्य है। जी खोलकर कह देने में पुरुषों की मर्य्यादा घटती है। जब तुम्हारा हृदय भीतर से क्रंदन करता है, तब तुम लोग एक मुस्कराहट से उसे टाल देते हो यह बड़ी प्रवञ्चना है।

बंधुवर्म्मा--( हँसकर ) अच्छा जा उधर, उपदेश मत दे।

( विजया और देवसेना जाती हैं )

बंधुवर्म्मा--उदार-वीर-हृदय, देवोपम-सौन्दर्य्य, इस आर्य्यावर्त्त का एकमात्र आशा-स्थल इस युवराज का विशाल मस्तक कैसी चक्र लिपियों से अङ्कित है! अंतःकरण में तीव्र अभिमान के साथ विराग है। आँखों में एक जीवन-पूर्ण ज्योति है। भविष्य के साथ इसका युद्ध होगा, देखेूँ कौन विजयी होता है। परन्तु मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि अब से इस वीर परोपकारी के लिये मेरा सर्वस्व अर्पित है। चलूँ--

[ जाता है ]

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