जयमाला--जब सभी लोगों की ऐसी इच्छा है, तब मुझे क्या।
बंधु०--तब मालवेश्वरी की जय हो! तुम्ही इस सिहासन पर बैठो। बंधुवर्मा तो आज से आर्य्य-साम्राज्य-सेना का एक साधारण पदातिक सैनिक है। तुम्हें तुम्हारा ऐश्वर्य सुखद हो।
( जाना चाहता है )
भीम०--ठहरो भइया, हम भी चलते है।
चक्रपालित--( प्रवेश करके )--धन्य वीर! तुमने क्षत्रिय का सिर ऊँचा किया है। बंधुवर्मा! आज तुम महान् हो, हम तुम्हारा अभिनन्दन करते हैं। रण में, वन में, विपत्ति में, आनन्द में, हम सब समभागी होगे। धन्य तुम्हारी जननी जिसने आर्य्यराष्ट्र का ऐसा शूर सैनिक उत्पन्न किया|
बंधु०--स्वागत चक्र! मालवेश्वरी की जय हो! अब हम सब सैनिक जाते हैं!
चक्र०--ठहरो बंधु! एक सुखद समाचार सुन लो। पिताजी का अभी-अभी पत्र आया है कि सौराष्ट्र के शकों को निर्मूल करके परम भट्टारक मालव के लिये प्रस्थान कर चुके है।
बंधु०--संभवतः महाराजपुत्र उत्तरापथ की सीमा की रक्षा करेंगे।
चक्र०--हाँ बंधु!
देवसेना--चलो भाई, मै भी तुम लोगों की सेवा करूँगी।
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