पृष्ठ:स्टालिन.djvu/५०

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उन्चास] [ *** उसके प्रदेश में वह सबसे अधिक देर तक कायम रही। किन्तु देश के शेष भागों में अत्याचारी शासन कान्ति की लपटों को ठंडा करने में शीघ्र ही सफल हो गया। स्टालिन के कार्य-श्रेत्र की प्रचन्ड कान्ति को अन्त में १९०७ ई० में जारशाही दबाने में सफल हो सकी। स्टालिन ने अपने इस कार्य के विषय में निम्न पंक्तियों का उल्लेख किया है- "१९०५ से १९०७ तक पार्टी ने मुझको बाकू नामक स्थान पर नियुक्त किया। यहां काम करते हुए मैंने दो वर्ष बिताए। मैंने वहां रह कर क्रान्तिकारी पद्धतियां का अध्ययन किया । यही पर मैंने कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर यह भी मालूम किया कि जनता की बड़ी २ संस्थाओं का नेतृत्व किस प्रकार किया जाता है। इस जगह मुझे पहली बार सरकारी कोधाग्नि का लक्ष्य बनना पड़ा। हां, इसके बाद मैं इस योग्य हा गया कि अपने आपको वास्तविक अर्थों में कान्ति का काय-कत्ता मान सक्" इन चन्द वाक्यों में कान्विकारो कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कर दिया गया है। लेकिन इस कार्य का विस्तृत हाल 'स्टवीनाक' ने अपनी आत्म-कथा में लिखा है। इस व्यक्ति का नाम उस समय 'लुइस पना' था। बाद में उसने कई कल्पित नाम धारण किये। किन्तु संसार उसे स्टवीनोफ़ के नाम से ही अधिक जानता है। यही वह व्यक्ति था जो लेनिन बन कर रूस का निवासित बन्दो रहा है। स्टवोनाफ का दिया हुआ विस्तृत वणेन दक्षिणो रूस के क्रान्तिकारियों के उस कार्य पर पर्याप्त प्रकाश डालता है, जो स्टालिन के नेतृत्व में हुआ था। स्टवीनोफ लिखता है "सबसे प्रथम वस्तु जिसको हमको आवश्यकता थी वह बन्दुके और कलवार ताप थीं। दक्षिणी रूस को क्रान्तिकारी कौंसिल के प्राधीन-जिसका नेता उस