पृष्ठ:स्टालिन.djvu/५१

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पचास] समय स्टालिन था-मैंने डेनमाके के शास्त्रागार से बात चीत की। वहां ऐसी कलदार तोपे तयार होती थीं, जिन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता था। मेरी यह बात चीत हम्बर्ग की एक कोठी के द्वारा हुई। इसके बाद उनका एक प्रति निधि डेनमार्क के कारखाने की ओर से हम्बग में मुझसे मिला । उसको मैने बतलाया कि मैं 'प्रीष्म-प्रधान कटिबन्ध' की सेना का प्रतिनिधि हूँ। कुछ राइफिलें और उनका बारूद शरौद की फैक्टरी से प्राप्त किया गया और अधिक अच्छी राइफिले बेरिज- यम के एक कारखाने से मंगाई गई। उनके लिये गोली बारूद कार्ल्स रो के सरकारी मैगजीन से मांगी गई। 'काल्से रो' में पहुँच कर मैंने अपने आपको बेल्जियम का एजेन्ट प्रदशित किया और इस विषय में मुझ पर कोई संदेह नहीं किया गया। इस प्रयत्न में मुझे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। एक अवसर पर कारखाने के प्रबंधक ने मुझको पतलाया कि यहां एक सरकारी रूसी दल पाया है और प्राम- हपूर्वक मुझसे मिलना चाहता है। सौभाग्य-वश कोई विशेष विघ्न उपस्थित नहीं हुआ। बात यह हुई कि रूसी अफसर मुझ से बिल्कुल अपरिचित थे। वह मेरे कार्य में बाधक न होकर सहायक हुए और मुझको उन्होंने सामान खरीदने में सहायता देने का वचन दिया । परन्तु सबसे बड़ी कठिनाई उपस्थित हुई युद्ध सामग्री को रूस ले जाने की। "मैं हालेण्ड, बौल्जयम, इटली और फ्रांस के विभिन्न बन्दरगाहों में गया और वहां के समाजवादी नेताओं से भी मिला। किन्तु मेरी कठिनाइयां दिन प्रति दिन बढ़ती ही गई। जिस अगह मैं जाता और जिस व्यक्ति से भी मिलता, वह यही कहता था कि भापकी सोची हुई योजनाएं भक्रियात्मक हैं। अन्त में