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पृष्ठ:स्टालिन.djvu/८८

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सतासी] तक उसका प्रभाव समचे यूरोप भर में न फैल जाता । इस से पूर्व इसकी विजय एवं सफलता केवल दिखावे कि वस्तुएं थीं। इसलिये रूसो कान्ति को सफलता को स्थायी बनाने के लिये संसार के प्रत्येक भाग में वैसी ही क्रान्ति करनी चाहिये। आंतरिक व्यवस्थामों के विषय में ट्राँदरकी का कथन यह था कि स्टालिन की पद्धति उन देशों की साधारण पुनरावृत्ति है जहां सम्राटों का शासन है। कार्य-पद्धति वही है, केवल रूप बदला हुआ है। वहां भी और अन्य भी शासक उच्च- आसन पर भासीन है और शासित प्रजा उसके पैरों में पड़ी है। वैसे तो स्टालिन दल की गुप्त समिति का साधारण पदा- धिकारी था, परन्तु उसके अधिकार और शासन-क्षेत्र की दृष्टि से उसका व्यक्तित्व बहुत बड़ा था। वास्तव में स्टालिन एक ऐसा डिक्टेटर है, जो समय भूमण्डल की समस्त जनसंख्या के छटवें अंश से बलात् अपनी बात मनवाता है। वहां जनता को सम्मति देने का कोई अधिकार नहीं। जो उससे कहा जावे, वह उसी को मानने के लिये विवश है। किन्तु इसके मुकाबले में ट्रॉट्स्की का कहना था कि मेरे राजनीतिक सिद्धान्त विशाल जन-तंत्र पर अवनम्बित है। इस प्रकार के संघर्ष में प्रायः देखा गया है कि जनता की सहानुभूति भाक्रमणकारी की अपेक्षा अत्याचार सहन करने वाले के साथ अधिक होती है। अत: इस मामले में भी साधारण जनता की सहानुभूति निर्वासित ट्रॉट्स्की के साथ ही हुई। स्टालिन के लिये यह जानना कठिन नहीं था कि यदि सच्चे प्रयों में स्वतंत्र जनमत लिया गया, वो विजय ट्रॉदरकी की ही होगी। दन की प्रबन्धक कमेटी का अधिवेशन फिर हुमा। इस ऐतिहासिक अधिवेशन में स्टालिन ने लेनिन की राजनीतिक