[भदासी भविष्यवाणी को फिर दोहराया। स्टालिन का कथन था कि कान्ति की सफलवा तभी सुरक्षित रह सकती है जबकि ट्रॉदरको को देश से बाहर भेज दिया जावे। यहां यह विचारणीय है कि ट्रॉट्स्की के बंटे हुए महत्व के कारण किसी के हृदय में भूल से भी यह विचार पैदा न हुआ कि यदि स्टालिन का सिरड़ा दिया जाता तो यह किस्सा सदा के लिये मिट जाता। दल ने ट्रॉदूरकी के नागरिक अधिकार छीन कर उसे निर्वासन दंड दिया। अब उस बेचारे को विवश होकर टकी में शरण लेनी पड़ी। उस देश में रहते हुए ट्रॉदकी ने निम्न पंक्तियां लिखीं- "जिस समय यह लेख प्रकाशित होगा, मेरी आयु (सन् १९२६ में).५० वर्ष की हो जावेगी। मैं अभी स्कूल में पढ़वाया कि पुलिस ने मुझे पहली बार गिरफ्तार किया। इस घष्टि से देखा जावे तो मेरा स्कूल कारावास ही था। वहां रह कर ही मैंने निर्वासन-दण्ड और नजरबन्दी के पाठ पढ़े। बार के शासन-काल में मैं चार वर्ष कैद में रहा । मुझे दो बार निर्वासित किया गया। पहली बार दो वर्ष बाहर रहना पड़ा। दूसरी बार मैं केवल चन्द सप्ताह के बाद बच कर भाग भाया। इस प्रकार मेरी भायु के न्यूनाधिक बारह वर्ष व्यर्थ गये। "१०५ की क्रान्ति की असफलता से पूर्व मैं दो वर्ष तक निर्वासित रहा और उसके पश्चात् दस वर्ष तक । युद्ध-काल में जर्मनों ने मुझे कारावास का दण्ड दिया, यद्यपि जर्मनी में न होने के कारण मुझे यह दण्ड भुगतना नहीं पड़ा। उसके अगले वर्ष मुझे फ्रांस से निर्वासित किया गया। फंच पुलिस ने मुझे स्पेन की सीमा पर ले जाकर छोड़ दिया, जहां मुझे फिर एक बार जेल की हवा खानी पड़ी।" "मैं मादिर के नेलखाने से भी बच कर निकल भागा।
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