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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/११२

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स्त्रियाँ विलक्षण मोह-जाल में लिपटी होंगी और जिन्हें अपने शरीर का ज्ञान या विचारशक्ति न होगी और पुरुषों के सिवाय और कुछ देखती ही न होंगी-उनकी बात न्यारी है। और जो पुरुष यह पक्का इरादा कर बैठे हों कि स्त्रियों को विवाहित दशा में ही रखना और उन्हें सब तरह से अपनी ताबेदार ही बनाना-तो स्त्रियों को विवाह के सिवाय और किसी धन्धे या उद्योग में न लगने देने वाली उनकी युक्ति या पॉलिसी-युक्ति के लिहाज़ से पसन्द करने योग्य है। पर सचमुच जो यह बात ऐसी ही हो तो, स्त्रियों के मन पर पड़े हुए गहरे काले अज्ञान के परदे को शिक्षा के द्वारा हटाने का प्रयास करना निरी मूर्खता है-बड़ी भारी भूल है। स्त्रियों को जो साधारण और उच्च शिक्षा दी जाती है उसकी ज़रा भी आवश्यकता न थी। जो स्त्रियाँ समाचार-पत्र और पुस्तकें पढ़ सकती हैं वे इस स्थिति के लिए काँटे के समान हैं और जो लेखों और पुस्तकों के द्वारा अपने विचार प्रकट करने की शक्ति रखती हैं, वे ऐसी समाज-व्यवस्था के लिए सर्वथा असंगत है। समाज की इस स्थिति में क्षोभ पैदा करने वाली हैं। और स्त्रियों को केवल ऐसी ही शिक्षा देनी चाहिए थी कि जिससे वे घर की लौंडी और ज़नानख़ाने की बाँदी का ही कर्त्तव्य पूरा कर सकतीं। उन्हें ऐसी ही शिक्षा देनी चाहिए थी। इसके अलावा जो और-और प्रकार की शिक्षा स्त्रियों को

दी गई यह बड़ी भारी भूल होगई। यही मानना चाहिए।

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