नहीं कि जिसके सहारे वे ऐसी पराधीनता से छुटकारा पा सकें। यदि वे अपने पति को छोड़ कर जाना चाहें, तो वे अपने साथ अपने लड़के को भी नहीं ले जा सकतीं, इतना ही नहीं बल्कि वह धन, जो खास उनकी मिल्कियत है उसे भी अपने साथ नहीं ले जा सकतीं। पर यदि पति चाहे तो क़ानून के ज़ोर पर या शारीरिक बल पर ही स्त्री को अपने घर से निकाल सकता है और यदि वह यह भी न करके दूसरे रास्तों का भी सहारा पकड़े तब भी वह आजाद है। यदि अपनी भागी हुई स्त्री मिहनत-मज़दूरी करके कुछ कमावे, या उसे उसके रिश्ते-नाते वालों से कुछ सहायता मिले-और पति उसके हाथ में आई हुई वह रक़म छीनना चाहे तो छीन सकता है, पर क़ानून उस पर किसी तरह का एतराज़ नहीं कर सकता। यदि पति के आश्रय को छोड़ कर भागी हुई स्त्री को फाँसी की तख़्ती पर से भागे हुए कै़दी पर क्रोधित जेलर के समान पति के आश्रय में फिर न जाना पसन्द हो, और अपनी कड़ी मिहनत-मज़दूरी का पैसा यदि वह दुरात्मा पति से छीना जाना पसन्द न करती हो, तो उसे न्यायालय का आश्रय लेकर पति से न्यारी रहने का हुक्मनामा प्राप्त करना चाहिए। क़ानून की सहायता से अपने विवाह-सम्बन्ध को तोड़ने में आजतक इतना ख़र्च होता था कि रईस-घरानो की स्त्रियों को छोड़ कर साधारण स्त्रियाँ उनसे कोई लाभ नहीं उठा सकती थीं।
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